DU SOL NCWEB | 6th Semester Political Science | Understanding Globalization | Unit 2 BRICS & TNC and MNC | offline Exam

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6th Semester Political Science


Understanding Globalization


Unit 2    - BRICS & TNC and MNC

 



 

ब्रिक्स पांच देशों का एक समूह है और इसका गठन साल 2009 में किया गया था| इस समूह को ब्राजीलरूसभारत और चीन  देशों द्वारा मिलकर बनाया था| वहीं इस समूह द्वारा अभी तक कुल 10 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा चुका है| दरअसल ब्रिक्स राष्ट्र द्वारा हर साल औपचारिक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाता है और इस शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स राष्ट्र के राज्य और सरकार के प्रमुख द्वारा हिस्सा लिया जाता हैं|

 

ब्रिक्स का इतिहास (BRIC History):

बिक्र में शामिल सभी देशों की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत है और साल 2001 में इसी चीज का जिक्र जिम ओ’नील ने अपने ‘द वर्ल्ड नीड्स बेटर इकोनॉमिक ब्रिक’ नामक एक प्रकाशन में किया था|

 

जिम ओ’नीलगोल्डमैन सैच्य समूह जो कि अमेरिका का एक बहुराष्ट्रीय निवेश बैंक और वित्तीय सेवा कंपनी हैउसमें उस समय बतौर अध्यक्ष के रूप में कार्य करते थे| उसी दौरान उन्होंने भारतब्राजीलरूस और चीन की अर्थव्यवस्था पर अनुसंधान किया था और इन देशों के अर्थशास्त्र विश्लेषण करने के बाद उन्होंने अपने अनुसंधान को प्रकाशित किया था|

अपने प्रकाशन में जिम ओ’नील ने लिखा था कि चार ब्रिक देश (भारतब्राजीलरूस और चीन) तेजी से विकास कर रहे हैं और आने वाले 50 सालों तक इन देशों की संयुक्त अर्थव्यवस्थाएंइस वक्त दुनिया के सबसे अमीर देशों की अर्थव्यवस्थाओं से बड़ी होने वाली है| क्योंकि इन देशों का बाजार काफी बड़ा है और तेजी से बढ़ भी रहा है|

 

इस प्रकाशन में जिम ओ’नील ने इन चारों देशों के नाम के लिए ब्रिक(BRIC) शब्द का इस्तेमाल किया गया था और ये शब्द इन देशों के नाम के प्रथम शब्द से लेकर बनाया गया था|

 

ब्रिक्स का पूरा नाम (Full Form of BRICS)

 

जिस वक्त ब्रिक्स का गठन हुआ थाउस वक्त इसमें केवल चार देश ही शामिल थेजिसके कारण से इसे ब्रिक (BRIC) कहा जाता था और इसका पूर्ण प्रपत्र यानी फुल फॉर्मब्राजीलरूसचीन और भारत था| जब दक्षिण अफ्रीका देश भी इस समूह से जुड़ा तो इसका नाम ब्रिक्स (BRIC) रख दिया  गया|

 

ब्रिक्स को बनाने का उद्देश्य- (Objectives of BRICS)

विश्व में अमेरिका डॉलर एक प्रमुख मुद्रा है और ब्रिक्स देशों का लक्ष्य है कि वो इस मुद्रा की जगह अन्य मुद्राओं का उपयोग कर उन मुद्राओं को भी विश्व स्तर पर मजबूत कर सकें|

ब्रिक्स को बनाने का जो दूसरा सबसे बड़ा मकसद हैवो विकासशील देशों के लिए एक विशेष व्यापार ब्लॉक बनाना है| क्योंकि व्यापार के क्षेत्र में विकासशील देशों पर विकसित देश का काफी दबदबा है और इसी दबदबे को खत्म करने के लिए ब्रिक्स देशों द्वारा व्यापार ब्लॉक बनाने का लक्ष्य बनाया गया है|

इसके अलावा ब्रिक्स समूह विकसित और विकासशील देशों के बीच एक पुल के रूप में भी कार्य करता है और साथ में ही  विकासशील देशों को विकसित करने में उनकी मदद भी कर रहा है|

 

कब हुई ब्रिक्स की शुरुआत:

वर्ष 2006 में न्यूयॉर्क में ब्रिक राष्ट्र के विदेश मंत्रियों का एक अधिवेशन हुआ था और इसी अधिवेशन के दौरान भारतब्राजीलरूस और चीन देश ने मिलकर ब्रिक की स्थापना करने पर चर्चा की थी| जिसके तीन साल बाद यानी साल 2009 में इन देशों ने रूस में अपना प्रथम सम्मेलन किया था|

 

कब शामिल हुआ दक्षिण अफ्रीका देश:

इस ग्रुप के साथ वर्ष 2010 में दक्षिण अफ्रीका राष्ट्र भी जुड़ गया था| अप्रैल, 2011 में चीन में आयोजित किए गए इस शिखर सम्मेलन में इस देश के राष्ट्रपति ने भी भाग लिया था| जब से लेकर अभी दक्षिण अफ्रीका देश में भी कई बार इस शिखर सम्मेलन का आयोजन हो चुका है|

 

ब्रिक्स देशों में सहयोग क्षेत्र:

 

आर्थिक और वित्तीय सहयोग:


न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB), जिसकी स्थापना वर्ष 2014 में फोर्टलेज़ा (ब्राज़ील) में आयोजित ब्रिक्स के छठे शिखर सम्मेलन की गई थीब्रिक्स देशों के मध्य आर्थिक और वित्तीय सहयोग का सबसे प्रमुख उदाहरण है। इसकी स्थापना ब्रिक्स एवं अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचा एवं सतत् विकास परियोजनाओं के लिये कार्यान्वयन हेतु किया गया था। NDB का मुख्यालय चीन के शंघाई में है। वहीं इसका पहला क्षेत्रीय कार्यालय दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में है।

इसके अलावा वैश्विक वित्तीय संकट की संभावनाओं के मद्देनज़र ब्रिक्स राष्ट्रों ने वर्ष 2014 में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ही ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA) बनाने पर सहमति जताई थी। CRA का उद्देश्य भुगतान संतुलन संकट की स्थिति को कम करने और वित्तीय स्थिरता को मज़बूती प्रदान करने में मदद के लिये मुद्रा विनिमय के माध्यम से सदस्यों को अल्पकालिक मौद्रिक सहायता देना है। CRA की प्रारंभिक क्षमता 100 बिलियन डॉलर हैजिसमें चीन के 41 बिलियन डॉलरब्राज़ील के 18 बिलियन डॉलररूस के 18 बिलियन डॉलरभारत के 18 बिलियन डॉलर और दक्षिण अफ्रीका के 5 बिलियन डॉलर शामिल हैं।

 

स्वास्थ्य सहयोग:

ब्रिक्स स्वास्थ्य सहयोग की शुरुआत वर्ष 2011 में ब्रिक्स देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों की पहली बैठक के साथ हुई थी। स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग से सभी ब्रिक्स देशों के बीच सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे- संक्रामक रोगों की घटनाचिकित्सा सेवाओं और दवाओं तक समान पहुँच की कमी आदि की पहचान संभव हो पाई है।

 

इस क्षेत्र में ब्रिक्स की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि तपेदिक अनुसंधान नेटवर्क (Tuberculosis Research Network) को भी माना जा सकता है। इस नेटवर्क का उद्देश्य तपेदिक (Tuberculosis) के खिलाफ लड़ाई पर संयुक्त अनुसंधान और विकास की पहल को बढ़ावा देना है।

 

विज्ञानप्रौद्योगिकी और नवाचार:

विज्ञानप्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में सहयोग की शुरुआत वर्ष 2014 में इस विषय पर पहली मंत्रिस्तरीय बैठक के साथ हुई थी। इस बैठक से अनुसंधान परियोजनाओं हेतु संसाधनों के आदान-प्रदान और उपलब्धता के संदर्भ में काफी महत्त्वपूर्ण परिणाम प्राप्त हुए थे। इस क्षेत्र में सहयोग के लिये अब तक 11 कार्यदल स्थापित किये गए हैंजो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों जैसे- जल संसाधनों के प्रबंधनजैव प्रौद्योगिकी और जैव-चिकित्सा आदि में कार्य कर रहे हैं।

 

 

 

सुरक्षा सहयोग:

सदस्य देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSA) और सुरक्षा मुद्दों पर काम करने वाले समूहों की बैठकें सुरक्षा के क्षेत्र में ब्रिक्स वार्ता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इन बैठकों में सभी सदस्य अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरों और अंतर्राष्ट्रीय अपराधों जैसे- मादक पदार्थों की तस्करीसाइबर हमलेमनी लॉन्ड्रिंगभ्रष्टाचार और आतंकवाद आदि के खतरों पर अपने दृष्टिकोण का आदान-प्रदान करते हैं। इसी वर्ष ब्रिक्स के आतंकवाद पर संयुक्त कार्यदल ने आतंकवादी वित्तपोषणआतंकवादी उद्देश्यों के लिये इंटरनेट का प्रयोग और कट्टरता जैसे मुद्दों को ध्यान में रखकर  पाँच उप-कार्यदलों के गठन करने का निर्णय लिया है।

 

व्यापार:

ब्रिक्स बिज़नेस काउंसिल (BRICS Business Council) और बिज़नेस फोरम (Business Forum) इस समूह के अंदर व्यापार सहयोग के लिये मुख्य तंत्र हैं। बिज़नेस काउंसिल की स्थापना वर्ष 2013 में दक्षिण अफ्रीका में डरबन सम्मेलन के दौरान की गई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य पाँचों देशों के व्यापारिक समुदाय को एक साथ लाकर नए व्यावसायिक अवसरों की खोज करना है। वर्तमान में परिषद में कुल 9 कार्यदल मौजूद हैंजो मुख्यतः अवसंरचनाविनिर्माणऊर्जाकृषि व्यवसायवित्तीय सेवाएंक्षेत्रीय विमाननक्षमता स्तर का सामंजस्य और क्षमता विकास आदि से संबंधित हैं।

 

ब्रिक्स का महत्त्व:

गौरतलब है कि एक समूह के रूप में ब्रिक्स दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी वाली पाँच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।

वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसारइन पाँचों देशों का दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 23 प्रतिशत और विश्व व्यापार में लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा है।

वैश्विक विकासव्यापार तथा निवेश में ब्रिक्स देशों का बड़ा योगदान हैजो इसे वैश्विक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बनाता है।

विश्व अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स के बढ़ते योगदान ने नई पहल के लिये कई अवसरों का निर्माण किया है जो टिकाऊ और समावेशी विकास में मददगार साबित हो सकते हैं।

ईरान डील और INF संधि से अमेरिका की वापसी ने वैश्विक शांति पर बड़ा खतरा उत्पन्न कर दिया है। ब्रिक्स निष्पक्षता के सिद्धांत के आधार पर विवाद समाधान में सक्रिय रहकर विश्व शांति सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने में भी ब्रिक्स की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

 

 

 

 

ब्रिक्स की चुनौतियाँ:

ब्रिक्स समूह के आलोचक यह दावा करते हैं कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विविधतासमूह की व्यवहार्यता उसके हितों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती है।

 

ब्रिक्स के सभी देश एक-दूसरे से कम और चीन के साथ ज़्यादा व्यापार करते हैंइसलिये कई बार आरोप लगाए जाते रहे हैं कि इस मंच का प्रयोग अन्य देशों की अपेक्षा चीन के हितों को बढ़ावा देने के लिये ज़्यादा किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि चीन के साथ व्यापार घाटे को कम करना अन्य साझेदार देशों के लिये एक बड़ी चुनौती है।

 

अमेरिका के साथ दृष्टिकोण के विरोध के कारण कई वार्ताएँ विफल रही हैंइससे ब्रिक्स देशों के आर्थिक विस्तार में बाधा उत्पन्न होती है।

 

कुछ सदस्यों के बीच राजनीतिक मतभेद के कारण सदस्य देशों के भीतर नीतिगत समन्वय का अभाव देखा गया है। उदाहरण के लिये भारत-चीन संबंधों में पिछले कुछ वर्षों में लगातार तनाव देखा गया है।

 

विभिन्न मुद्दों से परेशान: समूह ने पिछले साल पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता जैसे संघर्षों को देखा हैजिसने भारत-चीन संबंधों को कई दशकों में अपने सबसे निचले स्तर पर ला दिया है।

 

पश्चिम के साथ चीन और रूस के तनावपूर्ण संबंधों और ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका दोनों में गंभीर आंतरिक चुनौतियों की वास्तविकता भी है।

 

दूसरी ओरवैश्विक स्तर पर चीन की छवि भी कोविड-19 के कारण खराब हुई है। इस पृष्ठभूमि मेंयह संदेहास्पद है कि ब्रिक्स मायने रखता है या नहीं।

विषमता: आलोचकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विविधता (देशों की परिवर्तनशील / विविध प्रकृति) के विविध हितों के साथ समूह की व्यवहार्यता के लिए खतरा है।

 

चीन केंद्रित: ब्रिक्स समूह के सभी देश चीन के साथ एक दूसरे से अधिक व्यापार करते हैंइसलिए इसे चीन के हित को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में दोषी ठहराया जाता है। चीन के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना अन्य साझेदार देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

 

शासन के लिए वैश्विक मॉडल: वैश्विक मंदीव्यापार युद्ध और संरक्षणवाद के बीचब्रिक्स के लिए महत्वपूर्ण चुनौती शासन के एक नए वैश्विक मॉडल का विकास है जो एकध्रुवीय नहीं बल्कि समावेशी और रचनात्मक होना चाहिए।

 

लक्ष्य होना चाहिए सामने आने वाले वैश्वीकरण के नकारात्मक परिदृश्य से बचना और दुनिया की एकल वित्तीय और आर्थिक सातत्य को विकृत या तोड़े बिना वैश्विक बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का एक जटिल विलय शुरू करना।

 

प्रभावी नहीं रहा: पांच-शक्ति गठबंधन सफल रहा हैहालांकि एक बिंदु तक। हालांकिचीन की आर्थिक वृद्धि ने ब्रिक्स के भीतर एक गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। इसके अलावा समूह ने अपने एजेंडे के लिए अपना इष्टतम समर्थन हासिल करने के लिए ग्लोबल साउथ की सहायता करने के लिए पर्याप्त नहीं किया है।

 

ब्रिक्स की उपलब्धियाँ:

वर्ष 1996 से वर्ष 2008 के दौरान विश्व के निर्यात में BRIC देशों की हिस्सेदारी 9 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई थीजो कि इस समूह के लिये एक बड़ी है।

कई जानकार NDB के गठन को भी ब्रिक्स की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानते हैंक्योंकि वर्तमान में इस संस्थान को IMF और विश्व बैंक जैसे बड़े संस्थानों के स्तर का माना जाता है।

आर्थिक क्षमता और जनसांख्यिकी विकासब्रिक्स देशों को आगे बढाने में काफी मददगार साबित हुई हैजिससे ये देश वैश्विक राजनीति को प्रभावित करने में सक्षम हुए हैं। भारत चीन और रूस इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

 

भारत और ब्रिक्स:

ज्ञातव्य है कि इसकी स्थापना के साथ ही भारत ने उसमें एक महत्त्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका अदा की है। भारत सदैव ही वैश्विक आर्थिक विकासशांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये ब्रिक्स के मंच को महत्त्व देता रहा है।

आर्थिक मोर्चे पर सहयोग हमेशा से ही BRICS के प्रति भारत की नीति का प्रमुख केंद्र रहा है। भारत ब्रिक्स को लैटिन अमेरिकीअफ्रीकी और एशियाई देशों के साथ बहुपक्षीय संबंध बनाने के लिये एक मंच के रूप में देखता है।

भारत ने चीन के साथ अपने सदियों पुराने जटिल संबंधों को सुलझाने के लिये एक मंच के रूप में BRICS का उपयोग करने की भी कोशिश की है।

साथ ही न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना में भी भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ब्रिक्स की भारत के भोजन और ऊर्जा सुरक्षा संबंधी मुद्दों को संबोधित करने और आतंकवाद का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

 

ब्रिक्स का कॉमन पेमेंट सिस्टम:

ब्रिक्स देशों के बीच एक कॉमन पेमेंट सिस्टम (Common Payment System) बनाने पर चर्चा की जा रही है।

गौरतलब है कि इस सिस्टम का प्रमुख उद्देश्य अमेरिकी डॉलर पर ब्रिक्स देशों की निर्भरता को कम करना और आपसी व्यापार में अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग करना है।

इस सिस्टम के निर्मित होने पर ब्रिक्स की यह भुगतान प्रणाली सदस्य देशों के बीच राष्ट्रीय मुद्रा में भुगतान को प्रोत्साहन देगी और सभी देशों के बीच स्थायी भुगतान एवं निवेश को सुनिश्चित करेगी।

ब्रिक्स व्यापार परिषद ने भी ब्रिक्स ब्लॉक के भीतर आपसी निवेश के लिये समन्वय केंद्र बनाने हेतु रूस की पहल का समर्थन किया है।

 

ब्रिक्स और UN सुधार:

ब्रिक्स समूह के सदस्य देश सदैव ही संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े बहुपक्षीय संगठनों को मज़बूत करने और उनमें सुधार करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देते रहे हैंताकि विकासशील देशों के समक्ष मौजूद चुनौतियों से निपटा जा सके।

11वें शिखर सम्मेलन के संयुक्त विवरण में भी कहा गया है कि “हम 2005 के विश्व शिखर सम्मेलन के दस्तावेज़ को दोहराते हैं एवं संयुक्त राष्ट्र को प्रभावी और कुशल बनाने के लिये तथा इसके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के उद्देश्य से इसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता की पुष्टि करते हैं।”

 


ब्रिक्स प्राथमिकताएं:

बहुपक्षवाद प्राप्त करना: पहला संयुक्त राष्ट्र विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर विश्व व्यापार संगठन और अब यहां तक ​​कि विश्व स्वास्थ्य संगठन तक बहुपक्षीय संस्थानों के सुधार को आगे बढ़ाना है ।

 

यह कोई नया लक्ष्य नहीं है। ब्रिक्स को अब तक बहुत कम सफलता मिली हैहालांकि बहुपक्षवाद को मजबूत करना एक मजबूत बंधन के साथ-साथ एक बीकन का भी काम करता है।

 

सुधार के लिए वैश्विक सर्वसम्मति की आवश्यकता है जो कि अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के मौजूदा माहौल और स्वास्थ्यजीवन और आजीविका के लिए कोविड -19 के कारण हुई तबाही में शायद ही संभव है।

 

आतंकवाद का मुकाबला करने का संकल्प: आतंकवाद यूरोपअफ्रीकाएशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों को प्रभावित करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय घटना है। अफगानिस्तान से संबंधित दुखद घटनाओं ने इस व्यापक विषय पर तेजी से ध्यान केंद्रित करने में मदद की हैबयानबाजी और कार्रवाई के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता पर बल दिया है।

 

इस संदर्भ मेंब्रिक्स आतंकवादी समूहों द्वारा कट्टरपंथआतंकवादी वित्तपोषण और इंटरनेट के दुरुपयोग से लड़ने के लिए विशिष्ट उपायों से युक्त ब्रिक्स काउंटर टेररिज्म एक्शन प्लान तैयार करके अपनी आतंकवाद-विरोधी रणनीति को व्यावहारिक रूप से आकार देने का प्रयास कर रहा है।

यह योजना आगामी शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण वितरण योग्य होने की उम्मीद है और उम्मीद है कि कुछ बदलाव ला सकती है।

 

सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के लिए तकनीकी और डिजिटल समाधानों को बढ़ावा देना ।

डिजिटल उपकरणों ने महामारी से बुरी तरह प्रभावित दुनिया की मदद की हैऔर भारत शासन में सुधार के लिए नए तकनीकी उपकरणों का उपयोग करने में सबसे आगे रहा है।

लोगों से लोगों के बीच सहयोग का विस्तार: हालांकिलोगों से लोगों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय यात्रा को पुनर्जीवित करने के लिए इंतजार करना होगा। डिजिटल माध्यमों से बातचीत व्यक्तिगत बैठकों का पूर्ण विकल्प नहीं है।

 

आगे बढ़ने का रास्ता

समूह के भीतर सहयोग: ब्रिक्स को चीन से केंद्रीयता छोड़ने और एक बेहतर आंतरिक संतुलन बनाने की जरूरत हैजो कि महामारी के दौरान उजागर हुई क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं के विविधीकरण और मजबूती की तत्काल आवश्यकता से प्रबलित है।

 

नीति निर्माता कृषिआपदा लचीलापनडिजिटल स्वास्थ्यपारंपरिक चिकित्सा और सीमा शुल्क सहयोग जैसे विविध क्षेत्रों में इंट्रा-ब्रिक्स सहयोग में वृद्धि को प्रोत्साहित करते रहे हैं।

ब्रिक्स ने अपने पहले दशक में आम हितों के मुद्दों की पहचान करने और इन मुद्दों को हल करने के लिए मंच बनाने के लिए अच्छा प्रदर्शन किया।

 

अगले दशकों में ब्रिक्स प्रासंगिक बने रहने के लिएइसके प्रत्येक सदस्य को पहल के अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिए।

 

बहुपक्षीय विश्व के लिए प्रतिबद्धता: ब्रिक्स देशों को अपने दृष्टिकोण को फिर से जांचने और अपने संस्थापक लोकाचार के लिए फिर से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। ब्रिक्स को एक बहु-ध्रुवीय दुनिया के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिए जो संप्रभु समानता और लोकतांत्रिक निर्णय लेने की अनुमति देती है।

 

उन्हें एनडीबी की सफलता पर निर्माण करना चाहिए और अतिरिक्त ब्रिक्स संस्थानों में निवेश करना चाहिए। ब्रिक्स के लिए ओईसीडी की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान विंग विकसित करना उपयोगी होगा जो ऐसे समाधान पेश करेगा जो विकासशील दुनिया के लिए बेहतर अनुकूल हों।

 

ब्रिक्स को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए ब्रिक्स के नेतृत्व वाले प्रयास पर विचार करना चाहिए । इसमें शामिल हो सकते हैं जैसे ब्रिक्स ऊर्जा गठबंधन और एक ऊर्जा नीति संस्थान स्थापित करना।

 

ब्रिक्स देशों को दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में संकट और संघर्ष के शांतिपूर्ण और राजनीतिक-राजनयिक समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।



टीएनसी बनाम एमएनसी TNC and MNC


व्यापार संरचनानिवेश और उत्पाद/सेवा प्रसाद के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय निगमों की कई श्रेणियां हैं। ट्रांसनेशनल कंपनियां (TNC) और मल्टीनेशनल कंपनियां (MNC) इन श्रेणियों में से दो हैं।

MNC और TNC दोनों ऐसे उद्यम हैं जो उत्पादन का प्रबंधन करते हैं या एक से अधिक देशों में सेवाएं प्रदान करते हैं। उन्हें व्यावसायिक संस्थाओं के रूप में जाना जाता हैजिनका प्रबंधन मुख्यालय एक देश में होता हैजिसे गृह देश के रूप में जाना जाता हैऔर कई अन्य देशों में काम करते हैंजिन्हें मेजबान देशों के रूप में जाना जाता है।

विनिर्माणतेल खननकृषिपरामर्शलेखानिर्माणकानूनीविज्ञापनमनोरंजनबैंकिंगदूरसंचार और आवास जैसे उद्योग अक्सर टीएनसी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से चलाए जाते हैं। उक्त निगम पूरी दुनिया में विभिन्न ठिकानों का रखरखाव करते हैं। उनमें से कई घरेलू और विदेशी स्टॉक धारकों के मिश्रण के स्वामित्व में हैं। अधिकांश टीएनसी और एमएनसी बड़े पैमाने पर बजट के साथ छोटे देशों के सकल घरेलू उत्पाद से अधिक हैं।

इस प्रकार, TNC और MNC समान रूप से अधिकांश देशों में वैश्वीकरणआर्थिक और पर्यावरणीय लॉबिंग के लिए अत्यधिक प्रभावशाली हैं। उनके प्रभाव के कारणदेश और क्षेत्रीय राजनीतिक जिले कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और टीएनसी को टैक्स ब्रेकसरकारी सहायता या बेहतर बुनियादी ढांचेराजनीतिक एहसान और उदार पर्यावरण और श्रम मानकों के प्रवर्तन के रूप में प्रोत्साहन देते हैं ताकि उनका फायदा हो सके। प्रतियोगी।

इसके अलावाउनके आकार के कारणमुख्य रूप से बाजार वापसी के खतरे के माध्यम सेसरकारी नीति पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है। वे विदेशी उद्योगों की प्रतिस्पर्धा को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से टैरिफ संरचनाओं जैसे विभिन्न व्यावसायिक चिंताओं पर निर्देशित लॉबिंग शुरू करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली हैं। कुछ शीर्ष टीएनसी और एमएनसी जनरल इलेक्ट्रिकटोयोटा मोटरटोटलरॉयल डच शेलएक्सॉनमोबिल और वोडाफोन ग्रुप हैं।

 

इसके अलावाबहुत से लोग अक्सर बहुराष्ट्रीय कंपनियों और टीएनसी का आदान-प्रदान करते हैं या उन्हें एक कंपनी से संबंधित होने के लिए गलत समझते हैंजो दो या दो से अधिक देशों में उत्पादन सुविधाओं का मालिक हैकेवल इस अंतर के साथ कि पूर्व मूल शब्दावली है। इस लोकप्रिय धारणा के विपरीतवे विभिन्न प्रकार के हैं।

TNC को तकनीकी रूप से अंतर्राष्ट्रीय निगमों और निवेश पर संयुक्त राष्ट्र आयोग द्वारा 'उन उद्यमों के रूप में परिभाषित किया गया है जो उस देश के बाहर उत्पादन या सेवा सुविधाओं का स्वामित्व या नियंत्रण करते हैं जिसमें वे आधारित हैं। समिति ने टीएनसी शब्द पर अपनी प्राथमिकता भी रखी है। दूसरी ओर, MNC, पुराना शब्द है और लोकप्रिय रूप से TNC और MNC जैसी फर्मों के लिए सामान्य लेबल बना हुआ है। यहाँ महत्वपूर्ण अंतर हैयद्यपि।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNC) का अन्य देशों में निवेश हैलेकिन प्रत्येक देश में समन्वित उत्पाद पेशकश नहीं है। वे अपने उत्पादों और सेवाओं को प्रत्येक व्यक्तिगत स्थानीय बाजार के अनुकूल बनाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। जाने-माने बहुराष्ट्रीय कंपनियां ज्यादातर उपभोक्ता सामान निर्माता और यूनिलीवरप्रॉक्टर एंड गैंबलमैक डोनाल्ड और सेवन-इलेवन जैसे त्वरित-सेवा वाले रेस्तरां हैं।

 

एक अन्य नोट परट्रांसनेशनल कंपनियां (TNC) बहुत अधिक जटिल फर्म हैं। उन्होंने विदेशी परिचालन में निवेश किया हैएक केंद्रीय कॉर्पोरेट सुविधा है लेकिन प्रत्येक व्यक्तिगत विदेशी बाजार को निर्णय लेनेअनुसंधान एवं विकास और विपणन शक्तियां प्रदान करते हैं। उनमें से ज्यादातर पेट्रोलियमआईटी परामर्शदवा उद्योगों से आते हैं।

उदाहरण शेलएक्सेंचरडेलॉइटग्लैक्सो-स्मिथ क्लेन और रोश हैं। जाने-माने बहुराष्ट्रीय कंपनियां ज्यादातर उपभोक्ता सामान निर्माता और यूनिलीवरप्रॉक्टर एंड गैंबलमैक डोनाल्ड और सेवन-इलेवन जैसे त्वरित-सेवा वाले रेस्तरां हैं।

सारांश

 

1) बहुराष्ट्रीय (एमएनसी) और अंतरराष्ट्रीय (टीएनसी) कंपनियां अंतरराष्ट्रीय निगमों के प्रकार हैं। दोनों एक देश में प्रबंधन मुख्यालय बनाए रखते हैंजिसे गृह देश के रूप में जाना जाता हैऔर कई अन्य देशों में काम करते हैंजिन्हें मेजबान देशों के रूप में जाना जाता है।

2) अधिकांश टीएनसी और एमएनसी बजट के मामले में बड़े पैमाने पर हैं और वैश्वीकरण के लिए अत्यधिक प्रभावशाली हैं। उन्हें स्थानीय अर्थव्यवस्थासरकारी नीतियोंपर्यावरण और राजनीतिक पैरवी के मुख्य चालक के रूप में भी माना जाता है

3) एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का अन्य देशों में निवेश होता हैलेकिन प्रत्येक देश में समन्वित उत्पाद की पेशकश नहीं होती है। यह प्रत्येक व्यक्तिगत स्थानीय बाजार में अपने उत्पादों और सेवाओं को अनुकूलित करने पर अधिक केंद्रित है। दूसरी ओरएक टीएनसी ने विदेशी परिचालन में निवेश किया हैएक केंद्रीय कॉर्पोरेट सुविधा है लेकिन प्रत्येक व्यक्तिगत विदेशी बाजार को निर्णय लेनेअनुसंधान एवं विकास और विपणन शक्तियां प्रदान करता है।

Link From Content take for study| Original content is available on link you can check-

 

http://www|differencebetween|net/business/difference-between-tnc-and-mnc/

 

https://www|drishtiias|com/daily-updates/daily-news-editorials/brics-in-the-present-time#:~:text=The%20importance%20of%20BRICS%20is,and%2016%25%20of%20international%20trade

 

https://www|deepawali|co|in/brics-summit-history-full-form-hindi-%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8|html

 

https://www|drishtiias|com/hindi/daily-updates/daily-news-editorials/importance-of-brics

 

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