Hindi A
4th semester/2nd Year
Unit 1 Chapter - 2
निबंध
निबंध का जन्म भारतेंदु युग में ही हो चुका था यह नवजागरण का समय था। इस काल के दौरान लेखक जनता की बुरी दशा के ऊपर अधिक ध्यान देते थे तथा अधिक से अधिक लेखन करते थे।इस युग में जितने अच्छे निबंध लिखे गए इतने अच्छे नाटक किया कहानियां नहीं लिखी गई।
भारतेंदु के युग में कई निबंधकार जैसे कि भारतेंदु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्रा, बद्रीनारायण चौधरी, बालमुकुंद गुप्ता राधाचरण गोस्वामी जैसे निबंधकार थे।
भारतेंदु के युग में लिखे गए निबंध अनेक विषय पर थे जैसे ' काश्मीर कुसुम ' ' उदयपुरोदय ' , ' कालचक्र ' , ' बादशाह दर्पण'ऐतिहासिक , ' वैद्यनाथ धाम ' , ' हरिद्वार ' , ' सरयू पार की यात्रा'विवरणात्मक , ' कंकण स्तोत्र'व्यंग्यपूर्ण वर्णनात्मक और ' नाटक ' , ' वैष्णवता और भारतवर्ष विचारात्मक निबन्ध हैं । भारतेन्दु सबसे अधिक सफल हुए अपने व्यंग्यात्मक निबन्धों में ।
बालकृष्ण भट्ट अपने समय के सर्वश्रेष्ठ निबन्धकार कहला सकते हैं । भट्ट जी ने सभी प्रकार के निबन्ध लिखे । ' मेला - ठेला ' , ' वकील ' - वर्णनात्मक , ' आँसू ' , ' चन्द्रोदय ' , ' सहानुभूति ' , ' आशा माधुर्य ' , ' खटका - भावात्मक ' , ' आत्म - निर्भरता ' , ' कल्पना - शक्ति ' , ' तर्क ' , और ' विश्वास'विचारात्मक निबन्ध हैं ।
भट्ट जी ने कई प्रकार के हास्य निबंध भी लिखे हैं जैसे कि ' खटका ' , ' इंगलिस पढ़े तो बाबू होय ' , ' रोटी तो कमा खाय किसी भांति ' , ' मुछन्दर ' , ' अकल अजीरन राग ' आदि निबन्धों में मस्ती , हास - परिहास , विनोद - व्यंग्य सभी हैं ।
भट्ट जी ने अपने निबंधों में उस समय की सबसे स्वच्छ सबल और दैनिक भाषा का प्रयोग किया है जिससे की आम जनता उनके निबंधों को बड़े आसानी से समझ सके|
जन - साहित्य को जन - भाषा में लिखने वालों में प्रतापनारायण मिश्र का नाम सर्वप्रथम आएगा । इनके व्यक्तित्व और निबन्धों में अदभुत आकर्षण है ।
मिश्रा जी अपने निबंध समाज के छोटे-छोटे मुद्दों को इस प्रकार लिखते थे कि जनता को उससे उद्देश्य भी मिले तथा वह उन मुद्दों को अधिक से अधिक समझ सके|
यह ' ब्राह्मण ' नामक पत्र निकालते थे , जिसमें इनके निबन्ध छपते थे । छोटे - छोटे विषयों पर इतने बढ़िया , मनोरंजन और उच्च उद्देश्य को लेकर किसी लेखक ने नहीं लिखा । इनकी शैली में घरेलू बोलचाल की शब्दावली तथा पूर्वी बोलियों की कहावतों और मुहावरों का प्रयोग मिलता है ।
प्रेमघन जी अपने निरालेपन के लिए याद किए जाते हैं । उनका उद्देश्य यह नहीं था कि उनकी बात साधारण समाज तक पहुँचे , उसका मनोरंजन हो या उसके विचारों में परिवर्तन हो । कलम की करामात दिखाना ही उनका उद्देश्य था । बालमुकुंद गुप्ता इस युग के सबसे प्रसिद्ध निबंध कारों में से एक थे।
भारतेंदु युग के निबंधकारों की विशेषताएं :-
पराधीनता के प्रति रोष
निबन्ध की एक विशेष शैली भी इस युग की विशेषता है।
द्विवेदी युग :- भारतेंदु के युग के बाद द्विवेदी युग का आरंभ होता है। भारतेंदु युग को बचपन का युग के रूप में देखा जा सकता है जिसमें मनोरंजन हास्य मजाक आदि जैसी चीजें ज्यादा पसंदीदा होती हैं परंतु द्विवेदी युग में जिम्मेदारी का योग आरंभ होता है।
द्विवेदी युग का निबन्ध - साहित्य भारतेन्दु युग के निबन्ध - साहित्य के समान सम्पन्न नहीं है । महावीर प्रसाद द्विवेदी , माधव प्रसाद मिश्र , अध्यापक पूर्णसिंह और चन्द्रधर शर्मा गुलेरी इस युग के प्रमुख निबन्धकार हैं । द्विवेदी को इस योग के आचार्य के रूप में देखा जाता है तथा आचार्य का काम होता है शिक्षा देना , ज्ञान - वर्द्धन कराना , समाज पर नया संस्कार डालना और सुधार करना । ये सब काम इन्होंने किये , इसलिए यह आचार्य कहलाए और इनके नाम पर ही इस काल का नाम द्विवेदी युग रखा गया ।द्विवेदी जी ने सभी प्रकार के निबन्ध लिखे । ' कवि और कविता ' ' प्रतिभा ' , ' साहित्य की महत्ता ' इनके विचारात्मक निबन्ध हैं । ' लोभ ' , ' क्रोध ' ' संतोष ' - भावात्मक , ' हंस का क्षीरनीर विवेक ' , ' जापान में पतंगबाजी ' , ' हजारों वर्ष पुराने खंडहर ' और ' प्रताप सुषमा ' - वर्णनात्मक हैं और ' हंस - संदेश ' तथा ' नल का दुस्तर दूत - कार्य ' - विवरणात्मक निबंध अर्थात इन निबंधों में द्विवेदी जी ने किसी चीज का विवरण प्रस्तुत किया है ।
माधवप्रसाद मिश्र भारतीय संस्कृति , धर्म - दर्शन , साहित्य कला के सच्चे उपासक थे । इनका अपना व्यक्तित्व था । यदि ये किसी को भारतीय और प्राचीन साहित्य का गौरव घटाने का प्रयत्न करते हुए पाते थे , तो उनकी आलोचना करते थे ।
अध्यापक पूर्णसिंह इस युग के सबसे प्रमुख , भावुक और विचारक निबन्धकार हैं । इससे अधिक गौरव की बात और क्या होगी कि इन्होंने केवल छ : निबन्ध लिखे और फिर भी अपने समय के श्रेष्ठ लेखक माने गए । उनमें से प्रमुख हैं ' मजदूरी और प्रेम ' , ' आचरण की सभ्यता ' , और ' सच्ची वीरता ' । अध्यापक जी के निबन्धों में प्रेरणा देने वाले नए - नए विचार है । उनकी भाषा बड़ी ही शक्तिशाली है ।
प्रसाद युग हिन्दी साहित्य का स्वर्ण काल है । क्या कविता , क्या गद्य दोनों का विकास इस काल में ऊँचे शिखर पर पहुँचा । कहानी , उपन्यास , नाटक , निबन्ध , आलोचना सभी का खूब विकास हुआ ।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी भी स्वतंत्र विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं । निबन्ध इन्होंने भी थोड़े ही लिखे । परंतु उनका निबंध इतने प्रसिद्ध थे कि वह इस युग के नामी निबंध कारों में से एक बन गए।
इनकी रचनाओं में भी जीवन को उठाने की प्रेरणा और नए विचारों का खजाना मिलता है ।
गुलाबराय जी :- यह निबन्धकार पहले हैं , आलोचक बाद में । ' फिर निराशा क्यों ? ' मेरी असफलताएँ ' , ' अंधेरी कोठरी ' इनके निबन्ध संग्रह हैं । ' मेरी असफलताएँ ' आत्मपरक या वैयक्तिक व्यंग्यात्मक निबन्धों का संग्रह है । इनकी भाषा बहुत ही सरल रहन-सहन थी
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का निबन्ध - संग्रह ' चिन्तामणि ' भारतीय साहित्य में ही नहीं , विश्व - साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । विचारात्मक निबन्धों में शुक्ल जी के निबन्ध सर्वश्रेष्ठ हैं । इनमें विचारों की बारीकी और गंभीरता , भावों की मनोवैज्ञानिकता , भाषा का गठन और उसकी शक्ति आदि आदर्श हैं ।
महादेवी वर्मा की ये पुस्तकें उल्लेखनीय मानी जाती हैं - ' स्मृति की रेखाएँ ' , ' अतीत के चलचित्र ' तथा ' श्रृंखला की कड़ियाँ ' । इनके अतिरिक्त गम्भीर विचारपूर्ण निबन्धों के लेखक सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' को भी नहीं भुलाया जा सकता ।
निबंध लेखन में शांतिप्रिय द्विवेदी का भी महत्वपूर्ण योगदान है। गांधीवादी नेता और छायावादी रचना इनकी रचनाओं की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
इन्होंने अपनी रचनाओं में जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण समाधानों को प्रस्तुत किया है। इन्होंने विचारात्मक और भावनात्मक दोनों प्रकार के निबंधों को लिखा है।
निबंध लेखन में ऐसे बहुत सारे तथा असंख्या लेखक हैं जिन्होंने निबंध लेखन के उद्भव और विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
परंतु वर्तमान के समय में निबंध लेखन में लेखकों की संख्या कम हो गई है तथा लोग निबंध लेखन में कम से कम जुड़ रहे हैं जिसके कारण निबंध लेखन की गति में कमी आई है।
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