DU SOL NCWEB 6th Semester | Political Science | Understanding Globalization | Unit 2B विश्व व्यापार संगठन बहुराष्ट्रीय कंपनियां और राष्ट्रीय कंपनी | Offline Exam Notes

 

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6th Semester    Political Science
 
Understanding Globalization
 
Unit 2 B


विश्व व्यापार संगठन बहुराष्ट्रीय कंपनियां और राष्ट्रीय कंपनी

 


ब्रेटन वुड्स समझौता और प्रणाली (Bretton Woods Agreement and System)

 

ब्रेटन वुड्स समझौता और प्रणाली की व्याख्या:

 


जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स में 44 देशो का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 730 प्रतिनिधियों ने एक कुशल विदेशी मुद्रा प्रणाली बनाने, मुद्राओं के प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन को रोकने और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के प्रमुख लक्ष्यों के साथ मुलाकात की। ब्रेटन वुड्स समझौता और प्रणाली इन लक्ष्यों के लिए केंद्रीय थे। ब्रेटन वुड्स समझौते ने दो महत्वपूर्ण संगठन भी बनाए - अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक। जबकि ब्रेटन वुड्स सिस्टम 1970 के दशक में भंग कर दिया गया था, आईएमएफ और विश्व बैंक दोनों अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के आदान-प्रदान के लिए मजबूत स्तंभ बने हुए हैं।

 

हालांकि ब्रेटन वुड्स का सम्मेलन केवल तीन सप्ताह से अधिक समय के लिए हुआ, लेकिन इसके लिए कई वर्षों से तैयारी चल रही थी। ब्रेटन वुड्स सिस्टम के प्राथमिक डिजाइनर प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड केन्स और अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के अमेरिकी मुख्य अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्री हैरी डेक्सटर व्हाइट थे। कीन्स की आशा थी कि एक शक्तिशाली वैश्विक केंद्रीय बैंक स्थापित किया जाए जिसे क्लियरिंग यूनियन कहा जाए और एक नया अंतरराष्ट्रीय रिजर्व मुद्रा जारी किया जाए जिसे बैंकर कहा जाए। व्हाइट की योजना ने एक नई मुद्रा के निर्माण के बजाय एक अधिक मामूली उधार निधि और अमेरिकी डॉलर के लिए एक बड़ी भूमिका की कल्पना की। अंत में, दत्तक योजना ने दोनों से विचार लिया, और श्वेत की योजना की ओर अधिक झुकाव लिया|

 

यह 1958 तक नहीं था कि ब्रेटन वुड्स सिस्टम पूरी तरह कार्यात्मक हो गया था। एक बार लागू होने के बाद, इसके प्रावधानों ने अमेरिकी डॉलर को सोने के मूल्य पर आंका गया। इसके अलावा, सिस्टम की अन्य सभी मुद्राओं को तब अमेरिकी डॉलर के मूल्य के लिए आंका गया था। समय पर लागू विनिमय दर सोने की कीमत 35 डॉलर प्रति औंस निर्धारित करती है।

 

प्रमुख बिंदु:

 

ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट एंड सिस्टम ने एक सामूहिक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय शासन बनाया जो 1940 के दशक के मध्य से 1970 के दशक तक चला। ब्रेटन वुड्स सिस्टम को अमेरिकी डॉलर के लिए एक मुद्रा खूंटी की आवश्यकता थी जो बदले में सोने की कीमत के लिए आंकी गई थी। ब्रेटन वुड्स सिस्टम 1970 के दशक में ढह गया लेकिन आईएमएफ और विश्व बैंक के विकास के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा विनिमय और व्यापार पर एक स्थायी प्रभाव पैदा किया।

 

 

वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान उपलब्ध है जो कि विश्व में धन के लेनदेन के लिए कार्य कर रहे हैं| इन निकायों में अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक साथ ही अंतर राज्य निकायों में जी-7 ,जी-10 और जी-20 आदि सम्मिलित है|

 

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड-

 


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एक अंत: सरकारी संगठन है, जो 1945 में अस्तित्व में आया| इसका मुख्यालय वॉशिंगटन में स्थित है| वर्तमान में इस संगठन के 189 सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकारी बोर्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं| अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रकृति इसकी निर्णय लेने की संरचना में परिलक्षित होती है|

इसके मुख्य कार्यों में विनिमय दर, विनियमन विश्व के सभी सदस्य देश के लघु अवधि की विदेशी मुद्रा देनदारियों की खरीद, सदस्य देशों को विशेष आहरण अधिकार का आवंटन इत्यादि सम्मिलित है| भुगतान संतुलन संकट की स्थिति में सदस्य देशों की सहायता करना इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य| अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य कार्य निम्नलिखित है-

1. अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को प्रोत्साहन|

2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का संतुलित विकास एवं विनिमय दरों का स्थिरीकरण|

3. विनिमय प्रतिबंधों की समाप्ति तथा बहुपक्षीय भुगतान की व्यवस्था|

4. भुगतान संतुलन की समस्या की स्थिति में सदस्य देशों की आर्थिक सहायता की उपलब्धता अंतरराष्ट्रीय भुगतान में आने वाले संकट का निपटारा तथा उसकी अवधि में कमी|


 

 

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष की सफलताएँ

मुद्रा कोष के संबंध में अध्ययन करने के पश्चात्य यह निष्कर्ष निकलता है कि मुद्रा कोष अपने कार्यालय के 30 वर्षों में world monetary balance की स्थापना करने में पर्याप्त सीमा तक सफल रहा है जैसा कि निम्न वर्णन से स्पष्ट है:

(1) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अपने आन्तरिक संगठन तथा बाहरी प्रभाव के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग स्थापित करने में सफल रहा है।

(2) मुद्रा कोष द्वारा अपने प्रभाव के आधार पर अमरीका जैसे सम्पन्न राष्ट्र को यूरोपीय देशों की पुनर्निर्माण संबंधी समस्याओं के समाधान के संबंध में प्रेरित किया गया है। 

(3) मुद्रा कोष ने विदेशी व्यापार पर लगे प्रतिबन्धों, foreign exchange control को कम . कराने तथा विदेशी भुगतान की बहुमुखी की स्थापना करने में सफलता प्राप्त की है। अब 35 देशों की मुद्राएँ स्वतन्त्र रूप में अन्य मुद्राओं में परिवर्तनीय हैं।

(4) मुद्रा कोष अन्तर्राष्ट्रीय तरलता को बढ़ाने में सफल हुआ है। उसने अपने स्थायी प्रसाधनों में पर्याप्त वृद्धि की है तथा विशेष आहरण अधिकार की व्यवस्था की है।

(5) मौद्रिक संकट के समय मुद्रा कोष द्वारा तकनीकी परामर्श दिया जाता है तथा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। सन् 1949 और 1958 के मध्य 30 देशों ने अपनी-अपनी मुद्राओं को अवमूल्यित किया। मुद्रा कोष ने इन मुद्रा के अवमूल्यनों को व्यवस्थित कराने में सफलता प्राप्त की है।

(6) मुद्रा कोष द्वारा विकासशील देशों की सहायता की गई है। कोष इन देशों को उसके भुगतान संतुलन तथा मौद्रिक स्थिरता के संबंध में सहायता प्रदान करता चला आया है। इन देशों के अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती रही है। विकासशील देशों की सहायता के लिए एक ट्रस्ट फण्ड (Trust Fund) भी बनाया गया है।

(7) मुद्रा कोष ने भुगतानों की सरल व्यवस्था करके अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि की है। वे देश जिनका व्यापार घाटे की स्थिति में होता है उनको मुद्रा कोष द्वारा सहायता दी जाती है। इससे विश्व के व्यापार में विगत वर्षों में लगभग 16 गुनी वृद्धि हुई है।

(8) मुद्रा कोष से भारत को समय-समय पर तकनीकी परामर्श का लाभ प्राप्त हुआ है। कोष ने भारत की आर्थिक नीति के निर्धारण में सहायता दी है। मुद्रा कोष के विशेषज्ञ समय-समय पर भारत आते रहे हैं।

(9) भारत के लिए कोष से 1974 में 642 मिलियन SDR के ऋण स्वीकृत हुए। 

(10) भारत द्वारा 1975 में “तेल सुविधा” के संबंध में 203 मिलियन SDR की सहायता प्राप्त की गई।

(11) मुद्रा कोष की पूँजी में वृद्धि संबंधी निर्णयजो जनवरी 1976 में लिया गयाके अनुसार भारत का अभ्यंश 940 मिलियन SDR के स्थान पर 1145 मिलियन SDR होगा। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की कुल पूँजी का यह 2.93 प्रतिशत होता है।

(12) मुद्रा कोष का सदस्य होने के कारण भारत को विश्व बैंक (World Bank) का सदस्य होने का अवसर प्राप्त हुआ है। विश्व बैंक से भारत लाभान्वित होता रहा है। वह विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करके अपनी अर्थव्यवस्था का सुधार करता रहा है तथा अब आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है।

विश्व बैंक द वर्ल्ड बैंक-



विश्व बैंक एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान है जो कुंजी कार्यक्रमों और परियोजनाओं के लिए विश्व के सभी आवश्यकता प्राप्त देशों को ऋण प्रदान करता है| विश्व बैंक एक तरह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का साझेदार संगठन है| दोनों ही संगठन ब्रेटन वुड्स समझौते के द्वारा अस्तित्व में आए | विश्व बैंक को अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक भी कहा जाता है आई बी आर डी| इसका मुख्यालय वॉशिंगटन डीसी अमेरिका में स्थित है| इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक व्यापक अर्थव्यवस्था में शामिल करना और विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के लिए प्रयास करना है| द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुंची थी जिसके कारण सन 1945 में आई बी आर डी का गठन किया गया जो कि ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में एक सिफारिश के दौरान हुआ था| विश्व बैंक के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

1. आर्थिक पुनर्निर्माण और विकास के लिए सदस्य देशों को अधिक समय के लिए पूंजी प्रदान करना|

2. भुगतान संतुलन एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिए लंबे समय के लिए पूंजी निवेश को प्रेरित करना|

3. अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देना और सदस्य देशों के लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना|

 

विश्व बैंक में समान मतदान प्रणाली है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में और विशेष रूप से 1980 और 1990 के दशक में देशों की ताकत को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी| विश्व बैंक नव उदारवादी प्रतिमान के प्रति आस्थावान रहा है जिसने वाशिंगटन की सर्व समिति को रेखांकित किया है| 1990 के दशक में इसने सुधार की आवश्यकता को स्वीकार किया तथा अपने आंतरिक व्यवस्था में सुधार किया| 2002 के बाद विश्व बैंक के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम प्राप्तकर्ता देशों के साथ वार्तालाप के माध्यम से तैयार किया गया है| विकासशील देशों की मतदान शक्ति भी बढ़कर 47% कर दी गई जिसका उद्देश्य समय के साथ इसे 50% तक बढ़ाना था|

 

 

विश्व व्यापार संगठन द वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन-



विश्व व्यापार संगठन विश्व की एकमात्र ऐसी संस्था है जिसका गठन अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संचालन व नियमन के लिए हुआ है| विश्व व्यापार संगठन विदेशी नीति में आर्थिक पक्ष से संबंधित है जिसका मूल उद्देश्य पूरे विश्व में एक बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली द्वारा सदस्य देशों के बीच व्यापार के लिए समुचित प्रतिस्पर्धा का माहौल तैयार करना है|

वर्ष 1994 में कराकस समझौते के द्वारा 123 देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किया तथा 8 वर्ष तक चली वार्ता के परिणाम स्वरूप गेट को विश्व पर संगठन में परिवर्तित करने का निर्णय लिया गया| जिसका जन्म 1 जनवरी 1995 को गेट और डंकल प्रस्ताव के बाद हुआ| यह एक प्रकार से नया गेट समझाता है|

 

गेट एक मंच था जहां सदस्य देश समय-समय पर एकत्रित होते थे और विश्व व्यापार की समस्याओं पर वार्तालाप करते और उनको समझाते थे| परंतु विश्व व्यापार संगठन एक सुव्यवस्थित और स्थाई विश्व व्यापार की संस्था है जिसकी एक कानूनी हैसियत है| इसके साथ ही विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के समक्ष महत्वपूर्ण है| जनवरी 1995 को इसके अलावा 77 सदस्य देश थे जिनकी संख्या वर्तमान में 164 तक पहुंच गई है वर्ष 2018 में इंडिया इसकी सदस्यता ग्रहण करने वाला 163 वा एवं अफगानिस्तान 164 वां देश बन चुका है| गेट के सातवें दौर- टोक्यो दौरा में विषय सूची को और विस्तार देकर गेट सेट करिए व्यापार बाधाओं को भी शामिल किया गया तथा इसी के साथ-साथ गेट में अपेक्षित सुधार लाने का भी प्रयास किया गया| टोक्यो द्वारा के बाद गेट की कमियों को दूर करने के उद्देश्य से सदस्य देशों ने यह महसूस किया कि अब इस बार का आयोजन किया जाए जिसके बाद इस तरह के दौरों की आवश्यकता ही ना रहे कालांतर में उरूग्वे दौर का आयोजन हुआ इसके फलस्वरूप 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई|

 

विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य:

1. विश्व व्यापार के अवरोधों को को कम से कम कर मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना|

2. समूचे विश्व के जीवन स्तर में प्रभावी वृद्धि करना|

3. समूचे विश्व में रोजगार के अवसरों को बढ़ोतरी करना|

4. वस्तुओं के व्यापार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित करना|

5. सेवाओं के व्यापार को प्रोत्साहन देना|

6. सतत विकास की अवधारणा को मजबूत करना|

 गैंट तथा विश्व व्यापार संगठन में अन्तर-

 

गैंट

विश्व व्यापार संगठन

इसकी कानूनी स्थिति नहीं थी।

इसकी कानूनी स्थिति है। विश्व व्यापार संगठन का जन्म अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि के तहत हुआ है जिसकी पुष्टि सदस्य देशों की सरकारों और संसद एवं विधान-मण्डलों ने की है।

इसके उद्देश्य सीमित थे। इसका उद्देश्य विश्व में उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना था।

इसके उद्देश्य व्यापक हैं। विश्व के साधनों का अनुकूलतम उपयोग सततीय दृष्टि से करना इसका प्रमुख उद्देश्य है।

सका क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में आने वाले व्यवधानों को हटाना था तथा प्रशुल्क कम करने की सिफारिश करना था ।

इसका क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में आने वाले इसे कार्य क्षेत्र में वस्तुओं में व्यापार के बहुपक्षीय समझौतेसामान्य समझौताबौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों का व्यापार समझौतेझगड़ों के निपटारे का समझौता आदि शामिल है।

यह एक ऐसा मंच था जिस पर सदस्य देश विश्व व्यापार समस्याओं पर विचार करने एवं समझाने के लिए दशक में एक बार मिलते थे।

यह सुस्थापितनियमबद्ध संगठन है जहाँ समझौतों पर निर्णय समयबद्ध होते हैं।
































गेट नियम तथा बहुपक्षीय समझौते का संग्रह था जिसके पास कोई स्थानिक आधार नहीं था इसके विपरीत विश्व व्यापार संगठन एक स्थाई संस्था है जिसके पास अपना सचिवालय|

 

गेट का संबंध अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से उत्पन्न मामलों के नियमन से था जबकि अंतरराष्ट्रीय विश्व व्यापार संगठन समझाते की कार्यप्रणाली और निर्णय निर्माण प्रक्रिया का विस्तार राजनीतिक स्तर तक है|

 

WTO के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन

विश्व व्यापार संगठन की निर्णायक संस्था इसके सदस्य देशों के मंत्रियों का सम्मलेन है जिसकी दो वर्ष में बैठक होना अनिवार्य है. यह सम्मलेन बहुपक्षीय व्यापार समझौते के अंतर्गत किसी भी मामले पर निर्णय कर सकता है.

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद से मंत्रिस्तर के 11 सम्मलेन हो चुके हैं. हाल ही में दिसम्बर, 2017 में WTO का 11वाँ मंत्रिस्तरीय सम्मलेन अर्जेंटीना की राजधानी Buenos Aires शहर में आयोजित हुआ. विदित हो कि WTO का पहला सम्मलेन सिंगापुर में दिसम्बर 1996 में हुआ था|







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