Introduction of International Relation
4th Semester
अंतरराष्ट्रीय संबंधों का परिचय
Unit - 3 - भारत की विदेश नीति
विदेश नीति क्या है?
विदेश नीति :- किसी देश की वह व्यवस्था जिसके द्वारा वह अन्य देशों से संबंध बनाता है उस देश की विदेश नीति कहलाती है। विदेश नीति के अंतर्गत कई प्रकार के संबंधों के बारे में चर्चा की जाती है।
विदेश नीति के अंतर्गत उस देश के उद्देश्य और अन्य देश से किस प्रकार के संबंध होने चाहिए यह सब निर्धारित किया जाता है तथा यह व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों को एक दूसरे से अच्छे संबंध स्थापित करने में सहायता करती है।
प्रत्येक देश के पास उसकी एक विदेश नीति होती है कुछ देशों में उसकी विदेश नीति उस देश के संविधान के अंतर्गत निर्धारित होती है तथा कुछ देशों में यह व्यवस्था नहीं है।
वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बारे में चर्चा करते समय विदेश नीति एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसके अंतर्गत हम विभिन्न देशों के अन्य देशों के साथ संबंधों के बारे में पढ़ते हैं।
अध्याय के महत्वपूर्ण विषय :-
भारत की विदेश नीति क्या है?
भारत की विदेश नीति बुनियादी निर्धारक क्षेत्र
ऐतिहासिक
भु-राजनीतिक
अर्थव्यवस्था
घरेलू रणनीतियों (आंतरिक रणनीति)
III. भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति
IV. भारत : एक उभरती हुई शक्ति
भारत की विदेश नीति :- कई विशेषताओं के कारण भारत विश्व में एक विशेष स्थान प्राप्त करता है यह विशेषताएं राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक है।
भारत इतिहास से ही एक स्वतंत्रता प्रेमी देश रहा है भारत हमेशा से ही स्वतंत्र विदेश नीति को अपनाता है चाहे वह काल मुगल साम्राज्य का हो या फिर सम्राट अशोक के काल का हो, भारत हमेशा से ही स्वतंत्र विदेश नीति को बढ़ावा देता है।
भारत की विदेश नीति ना ही किसी देश के दबाव में कार्य करती है वह एक स्वतंत्र विदेश नीति है तथा भारत देश विदेश से चाहे अपने संबंध बनाए यह भारत के ऊपर है कोई अन्य देश उसे दबाव में रखकर अपना कोई कार्य नहीं करा सकता।
समय के साथ साथ भारत ने अपनी विदेश नीति में कुछ परिवर्तन किए हैं जिससे कि वह अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को और भी बेहतर कर सकें।
भारत एशिया क्षेत्रफल के हिसाब से एक बड़ा देश है तथा अन्य छोटे देश उससे कुछ भयभीत रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत उन पर कब्जा कर लेगा इस प्रकार की विचारों को देखते हुए भारत ने अपने विदेश नीति में कुछ परिवर्तन किए हैं जिससे वह अन्य छोटे देशों के साथ अपने संबंधों को और भी बेहतर बना सके।
भारत सैन्य क्षेत्र, अंतरिक्ष, धार्मिक संस्कृति आदि में दुनिया के चुनिंदा देशों में है और भारत ने अपनी विदेश नीति निर्माण में इनका बेहतर उपयोग किया है। किसी देश की विदेश नीति के निर्धारण में कई कारक जिम्मेदार होते हैं, जिसमें भू-राजनीतिक, सैन्य बल आदि महत्वपूर्ण होते हैं।
भारत ने अपनी विदेश नीति के निर्माण के समय कई प्रकार के तत्वों का प्रयोग किया है जिससे कि उसकी विदेश नीति और भी प्रभावी बने जिससे अन्य देशों के साथ भारत के संबंध गठित हो ।
भारत की विदेश नीति एक स्वतंत्र विदेश नीति है जिसके तहत भारत अपना विकास बड़ी तेजी से कर रहा है तथा वह अन्य देशों के साथ वर्तमान में बहुत अच्छे संबंध गठित कर चुका है।
उदाहरण के लिए :- वर्तमान में महामारी के दौर में विश्व में कई देश भारत की सहायता के लिए आगे बढ़े हैं तथा उन्होंने भारत की सहायता के लिए अपने यहां से कुछ सुविधाएं प्रदान की है जिससे यह साफ प्राप्त होता है कि भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध बहुत ही अच्छे हैं तथा अन्य देश भी भारत के साथ अपने संबंधों को अच्छा बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं।
भारत की विदेश नीति के बुनियादी निर्धारक क्षेत्र
किसी भी देश की विदेश नीति का निर्धारण अनेक तत्वों से होता है। इसके पीछे का जो प्रमुख कारण है की सरकारें तो बदलती रहती है लेकिन विदेश नीति पहले जैसी ही रहती है।
फैडल फोर्ड और लिंकन का कहना है "मूल रूप से विदेश नीति की जड़ें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि राजनीतिक संस्थाओं परंपराओं आर्थिक आवश्यकताओं शक्ति के तत्व अभिलाषा ओं भौगोलिक परिस्थितियों तथा राष्ट्र के मूल रूप में पाई जाती हैं।"
भूगोल :- किसी भी देश की भौगोलिक स्थिति उस देश की विदेश नीति का निर्धारण करती है। जो देश भूगोल की दृष्टि से सुरक्षित होता है वह स्वतंत्र विदेश नीति का निर्माण करता है। भारत की भौगोलिक स्थिति में भी भारत की विदेश नीति को बहुत हद तक प्रभावित किया है। दक्षिण एशिया में सबसे बड़े देश भारत उत्तर में हिमालय तथा बाकी 3 तरफ समुद्र से घिरा हुआ है जहां यह स्थिति भारत को सुरक्षित घोषित करती है वही सामरिक दृष्टि से भारत के लिए चिंता का कारण है क्योंकि भारत को हिमालय क्षेत्र से घुसपैठ रोकने तथा समुद्री सीमाओं की रक्षा करने के लिए भारी सैन्य व्यय खर्च करना पड़ता है।
समुद्री मार्ग भारत के व्यापार के लिए बहुत ही आवश्यक है इसीलिए उनकी रक्षा के लिए इतना भारी व्यय भारत को करना पड़ता है।
हिंद महासागर के क्षेत्र में भर्ती अमेरिकी रूस ब्रिटेन की गतिविधियों से चिंता का होना स्वाभाविक है जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंद महासागर को शांति का क्षेत्र घोषित करने का प्रयास करता रहता है।
पाकिस्तान की तरफ से बढ़ती हुई आतंकवादी गतिविधियों को देखते हुए भारत पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण संबंधों की स्थापना को प्राथमिकता देता है।
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण वह अच्छे संबंध बनाने चाहिए क्योंकि इस भारत की सीमाएं उन देशों से लगते हैं वह देश हैं पाकिस्तान चीन नेपाल बांग्लादेश और म्यांमार।
आसियान और शार्क संगठनों को मजबूत करने के पीछे यही विचार है कि दक्षिण एशिया में भारत के हित सुरक्षित हूं अपने हितों को देखते हुए भारत ने एक शक्तिशाली नौसैनिक बेड़ा रखा हुआ है ताकि उसके समुद्री मार्गों की रक्षा की जा सके।
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ वाद विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा ने को अधिक महत्व देता है ना की किसी प्रकार की युद्ध गतिविधि से।
पाकिस्तान के साथ कटुता पूर्ण संबंध आज भी भारत की विदेश नीति के कुशल संचालन में सबसे बड़ी बाधा है तथा चीन बांग्लादेश श्रीलंका के साथ भी कुछ मतभेद हमारी विदेश नीति को गंभीर चुनौती देते हैं।
ऐतिहासिक या इतिहास :- भारत की विदेश नीति के चढ़े उसके इतिहास परंपराओं में समाहित है।भारत का अहिंसा वादी चिंतन अर्थात महात्मा बुद्ध और गांधी का आदर्शवादी चिंतन भारत की विदेश नीति के अंतर्गत देखा जा सकता है।।
नेहरू जी द्वारा प्रतिपादित पंचशील और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सिद्धांत भारत के ऐतिहासिक- सांस्कृतिक धरोहर है।
अहिंसा वादी परंपरा आज भी भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद में रंगभेद की नीति का विरोध आज भी हमारी विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत है भारत ने हमेशा ही साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद तथा रंगभेद की नीति का विरोध किया है।
पाकिस्तान द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण हो के बावजूद भारत ने पाकिस्तान के प्रति शांतिपूर्ण नीति को अपनाकर उसके जीते हुए क्षेत्र को वापस लौट आया।
भारत आज भी अपने पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति अपनाता है।
अर्थव्यवस्था या आर्थिक :- आर्थिक विकास के लिए यह जरूरी होता है कि उस देश के साथ प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन में उनको दोहन की क्षमता हो। भारत के पास प्राकृतिक संसाधन तो बहुत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे परंतु उनको प्रयोग करने के लिए तकनीक नहीं थी जिसके कारण भारत ने अमेरिका तथा ब्रिटेन जैसे देशों से संबंध स्थापित किए तथा वहां से तकनीको को मंगवाया।
शीत युद्ध के दौर में भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन करते हुए विश्व के दोनों महाशक्ति अमेरिका और रूस के साथ संबंध बनाए रखें तथा बिना किसी दबाव के अपना आर्थिक विकास किया।
अमेरिका रूस द्वारा बार-बार दबाव बनाया गया कि भारत उनके साथ शामिल हो जा लेकिन भारत ने अपने प्रभुसत्ता व प्रदेशिक अखंडता की रक्षा की तथा भारत किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ।
आज भी भारत की अर्थव्यवस्था आर्थिक उदारीकरण के दौर में है और वह WHO के नियंत्रण में कार्य कर रही है।
भारत अपने निकटवर्ती देशों के साथ मिलकर पारस्परिक आत्मनिर्भरता का विकास करना चाहता है इसके लिए वह आसियान शार्क सप्ताह का विचार रखकर दक्षिण एशिया को मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना चाहता है।
भारत के आर्थिक विकास को चुनौती देने का एक महत्वपूर्ण तत्व सैनिक है तत्व है भारत प्रतिवर्ष अपने आर्थिक बजट का एक बड़ा हिस्सा सेना पर खर्च करता है जिससे कि भारत का आर्थिक विकास प्रभावित होता है भारत प्रति वर्ष विदेशों से कोई ना कोई उच्च सैनिक प्रयोग में की लेता है तथा अपना सेना का विकास करता है।
आंतरिक रणनीति या घरेलू राजनीति :- किसी भी देश की घरेलू राजनीति व विदेश नीति में गहरा संबंध होता है। मीब्रेल का कहना है "विदेश नीति दूसरे माध्यमों से घरेलू नीति का विस्तार ही करती है"
भारत की विदेश नीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक नौकरशाही राजनीतिक दल दबाव समूह व जनमत है।
आज भारत की विदेश नीति का कोई भी निर्माण यह निर्णय एक स्वतंत्र विदेश विभाग करत है।
राजनीतिक दलों की विचारधारा ढांचा तथा उनकी आंतरिक कमजोरी विदेश नीति को एक उल्टा रूप प्रदान करते हैं जिससे कि देश की आंतरिक सुरक्षा पर खतरा हो सकता है।
व्यवसायिक दबाव समूह की दबाव कारी भूमिका भी आधुनिक समय में भारत की विदेश नीति को व्यापारिक हितों के अनुकूल चलने को बाध्य करती है।उदारीकरण के दौर में तो दबाव समूह के प्रभाव कारी भूमिका को और भी शक्तिशाली किया है।
किसी भी विदेश नीति के निर्धारण में जनमत का ध्यान रखना अति आवश्यक है क्योंकि विदेश नीति जनता के हितों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है जिससे की जनता को सुविधाएं प्राप्त हो तथा देश का विकास हो सके।
भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति
गुटनिरपेक्षता का सरल अर्थ है कि विभिन्न शक्ति गुटों से तटस्थ या दूर रहते हुए अपनी स्वतंत्रता निर्णय नीति और राष्ट्रीय हित के अनुसार सही न्याय का साथ देना।
गुटनिरपेक्षता का अर्थ यह है सही और गलत में अंतर करके सदा सही नीति का समर्थन करना।
गुटनिरपेक्षता शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना को विकसित करने अंतरराष्ट्रीय संघर्षों का विरोध करने व उनके समाधान का प्रयास करके विश्व में स्थाई शांति की स्थापना के प्रयास की नीति है।
जवाहर लाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए कहा है गुटनिरपेक्षता का अर्थ है "अपने आप को सैनिक गुणों से दूर रखना तथा जहां तक संभव हो तथ्यों को सैनिक दृष्टि से ना देखना यदि ऐसी आवश्यकता पड़े तो स्वतंत्र दृष्टि रखने तथा दूसरे देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना गुटनिरपेक्षता के लिए आवश्यक है"
गुटनिरपेक्षता की नीति का जन्म विशेष तौर पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ भारत मिश्र व युगोस्लाविया आदि के देशों के सहयोग से इस अवधारणा का पूर्ण विकास हुआ।
भारत के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के कारण :-
भारत किसी भी गुट में शामिल होकर विश्व में अनावश्यक तनावपूर्ण स्थिति पैदा करने का शौक नहीं था।
भारत बस अभी अपने उपनिदेशक शासन से स्वतंत्र हुआ था इसीलिए भारत अपनी स्वतंत्रता को किसी भी अन्य सैनिक गुट के हाथों में नहीं देना चाहता था।
भारत किसी भी गुट की विचारधारा के प्रभाव से ग्रस्त नहीं होना चाहता था तथा वह अपनी नीतियों एवं शासन प्रणाली में किसी गुट विशेष की विचारधारा या दृष्टिकोण को हावी नहीं होने देना चाहता था इसीलिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया।
भारत अपनी संप्रभुता एकता और अखंडता को सुरक्षित रखना चाहता था इसीलिए वह किसी भी सैनिक गुट में शामिल ना होकर गुटनिरपेक्षता आंदोलन की नीति के अंतर्गत शामिल हुआ।
भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के प्रमुख लक्षण
अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाए रखने और उसके लिए कार्य करना।
समानता पर आधारित विश्व समुदाय की स्थापना तथा रंगभेद का विरोध।
आणविक निशस्त्रीकरण तथा नवीन आर्थिक व्यवस्था की स्थापना।
अफ्रीका और एशिया के उपनिदेशक शासन से आजाद देशों की स्वतंत्रता का समर्थन करना।
संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के अंतर्गत उपरोक्त लक्ष्यों की प्राप्ति करना।
अपनी एकता अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करना।
अपने देश के विकास के साथ-साथ अन्य साथी देशों के विकास पर भी जोर देना।
विश्व युद्ध के दौरान दो गुटों के बीच में युद्ध की स्थिति को टालने के लिए कार्य करना।
गुटनिरपेक्षता तथा तटस्थता में अंतर
तटस्थता केवल वास्तविक युद्ध की अवधि तक सीमित है जबकि गुटनिरपेक्षता एक सक्रिय सकारात्मक नीति है। अर्थात गुटनिरपेक्षता की नीति वर्तमान में भी कार्य कर रही है और तटस्थता की नीति केवल युद्ध काल के दौरान ही कार्य में आती है।
गुटनिरपेक्ष राष्ट्र शीत युद्ध में अपने को प्रत्येक रखते हैं।अर्थात शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन से जुड़े सभी राष्ट्र किसी भी गुट में शामिल नहीं थे वह एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में कार्य कर रहे थे।
तटस्थता दो आक्रमण राष्ट्रीय के प्रति उदासीनता का दृष्टिकोण है। इसके विपरीत गुट निरपेक्ष राष्ट्र न्याय पक्ष का समर्थन करता है। ( अर्थात युद्ध काल के दौरान तटस्थता की नीति दो राष्ट्र को एक दूसरे से पूरी तरह से अलग कर देती है परंतु गुटनिरपेक्ष की नीति दो राष्ट्रों के बीच सुबह करवा कर न्याय का समर्थन करती है।
तटस्थता की नीति कुछ समय के लिए कार्य करने वाला सिद्धांत है परंतु गुटनिरपेक्षता की नीति एक स्थाई सिद्धांत है।
गुटनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताएं
गुटनिरपेक्षता की नीति सैनिक या सुरक्षा संधियों का विरोध करती है।
गुटनिरपेक्षता की नीति शीत युद्ध का विरोध करती है।
पंचशील सिद्धांत गुटनिरपेक्षता की आधारशिला है।
गुटनिरपेक्षता की नीति शांति माया से अस्तित्व तथा हस्तक्षेप की धारणा में विश्वास रखती है।
गुटनिरपेक्षता राष्ट्रीय हित प्राप्ति का साधन है।
यह अलगाववाद कि नहीं बल्कि क्रियाशील की नीति है।
गुटनिरपेक्षता की नीति शास्त्री करण के पक्ष में नहीं है तथा शास्त्री करण का पुरजोर रुप से विरोध करती है।
यह नीति समाजवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध करती है।
गुटनिरपेक्षता जातिवाद तथा रंगभेद में विश्वास नहीं करती।
यह नीति लचीले है अर्थात इस नीति को समय के साथ-साथ बदला जा सकता है तथा इसमें बदलाव किए जा सकते हैं।
DU SOL 4th Semester Political Science DSE अंतरराष्ट्रीय संबंधों का परिचय Unit 1 to 3 Complete Chapters Explain in Hindi Notes PDF available. Click Here