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DU SOL NCWEB
4th Semester History
History of India C. 1700 – 1950
Unit 2 - बंगाल मैसूर मराठा और पंजाब के विशेष संदर्भ के साथ ब्रिटिश सत्ता का विकास और एकत्रीकरण
बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना: बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना- प्लासी और बक्सर के युद्ध भारतीय इतिहास के निर्णायक युद्ध थे जिसके परिणाम स्वरूप बंगाल में ब्रिटिश राज्य की नींव पड़ी और भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ| बंगाल की राजनीतिक दशा: अंग्रेजों के प्रभुत्व का मार्ग तथा अंत में संपूर्ण भारत शासन के अधीन आ गया| अंग्रेजों का भारत में प्रभुत्व स्थापना का कार्य से आरंभ हुआ| मुगल काल में बंगाल मुगल सम्राटों के अधीन एक प्रांत था जहां पर मुगल सूबेदार के संरक्षण में शासन होता है|
1. मुर्शिदकुली खाँ - जिस समय औरंगजेब की मृत्यु हुई उस समय बंगाल का सूबेदार मुर्शिदकुली खाँ था । उसकी ईमानदारी के कारण उसके काल में बंगाल की अत्यधिक उन्नति हुई तथा व्यापार के कारण बंगाल मुगल साम्राज्य का समृद्ध प्रान्त बना रहा । 30 जून , 1727 ई . में मुर्शिदकुली खाँ की मृत्यु के उपरान्त उसका दामाद शुजाउद्दीन मोहम्मद खान शुजाउद्दौला असदजंग ; बंगाल और उड़ीसा का शासक बना ।
2. सरफराज खाँ- शुजाउदौला की मृत्यु के बाद 13 मार्च , 1739 ई . को उसका पुत्र सरफराज खाँ , जिसे अलाउदौला हैदरजंग की उपाधि प्राप्त थी , बंगाल और बिहार और उड़ीसा का शासक बना ।
3. अलीवर्दी खाँ - अप्रैल 1739 ई . के बिहार के नाजिम अलीवर्दी खाँ ने बंगाल के सूबेदार सरफराज खाँ की झिरिया के युद्ध में हत्या करके बंगाल की सूबेदारी प्राप्त की । अलीवर्दी खाँ भी योग्य शासक था । उसके काल में मराठों ने निरन्तर बंगाल पर छापे मारने प्रारम्भ कर दिए थे , जिससे मुक्त होने के लिए अलीवर्दी खाँ ने मराठों से सन्धि कर ली तथा 12 लाख रूपया एवं उड़ीसा का प्रान्त मराठों को चौथ के रूप में दे दिया । तदुपरान्त उसने अपने राज्य की आन्तरिक व्यवस्था को सुधारा तथा शान्ति स्थापित की ।
सिराजुद्दौला का शासनकाल:
अलीवदर्दी खाँ के कोई पुत्र न था अतः उसने अपनी सबसे छोटी पुत्री के पुत्र मिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया । राज्यारोहण के समय वह 25 वर्ष का अनुभव शून्य युवक था तथा हठी एव बिलासी होने के कारण उसकी कठिनाइयाँ और भी अधिक बढ़ गई थी । सर शफाल अहमद खाँ के अनुसार- " सिराजुद्दौला अदूरदर्शी , हठी और दृढ़ था । उसको वृद्ध अलीवर्दी खाँ के लाड़ प्यार ने बिल्कुल बिगाड़ दिया था । गद्दी पर बैठने पर भी उसमें कोई सुधार न हुआ । वह झूठा था , कायर था , नीच और कतघ्न था । उसमें अपने पूर्वजों के कोई गुण न थे और अपने जो गुण थे उनको प्रयोग में लाने की शक्ति उसमें नहीं थी । " वह भी अंग्रेजों की कुटिल नीति को उसी तरह शिकार बना जिस तरह दक्षिण के नवाब तथा कुछ अन्य राजा बने थे ।
सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के मध्य संघर्ष के कारण ( प्लासी के युद्ध के कारण ) अलोवर्दी खाँ द्वारा मृत्यु शय्या पर दी गई चेतावनी को सिराजुद्दौला भूला नहीं था । यद्यपि इस समय बंगाल पर व्यापार करने वाली यूरोपियन शक्तियों - फ्रांसीसी , डच तथा अंग्रेज में सिराजुद्दौला के सबसे अधिक अच्छे सम्बन्ध अंग्रेजों के साथ ही थे ।
1. अंग्रेजों का षड्यन्त्र - बंगाल में अंग्रेजों की बढ़ती हुई शक्ति के नवाब संशकित हो उठा था । उसके राज्याभिषेक के समय अंग्रेजी कम्पनी की उदासीनता से नवाब अत्यन्त क्रुद्ध था । नवाब की प्रजा होने के नाते ब्रिटिश कम्पनी को नवाब के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना आवश्यक था किन्तु अंग्रेजों ने उसके राज्याभिषेक के समय कोई भेंट आदि नहीं भेजी थी । यही नहीं , अंग्रेजों के सिराजुद्दौला से व्यक्तिगत ईर्ष्या रखने वाले सम्बन्धियों और अधिकारियों का साथ देना प्रारम्भ कर दिया था । उन्होंने हिन्दुओं के साथ मिलकर मुस्लिम शासन के विरूद्ध षड्यन्त्र रचना आरम्भ कर दिया था तथा कलकत्ता नवाब के शत्रुओं का शरण - स्थल बन गया था ।
2. व्यापारिक सुविधाओं का दुरूपयोग - नवाब द्वारा की गई व्यापारिक सुविधाओं का दुरूपयोग करना अंग्रेजों ने आरम्भ कर दिया था । फुरुखसियर ने कम्पनी को बिना चुंगी के व्यापार करने की सुविधा दी थी परन्तु कम्पनी के कर्मचारी इसका अपने व्यक्तिगत व्यापार के लिए भी लाभ उठाने लगे । दस्तक प्रथा के दुरूपयोग के कारण बंगाल के नवाब को आर्थिक क्षति पहुँची ।
3. किलेबन्दी का प्रश्न - नवाब और अंग्रेजों के मध्य वैमनस्य का सबसे प्रमुख कारण अंग्रेजों द्वारा अपनो बस्तियों की किलेबन्दी करना था । नवाब के अंग्रेजों तथा फ्रांसीसी को उनके द्वारा की जा रही किलेबन्दी को रोकने की आज्ञा दी परन्तु अंग्रेजों के नवाब की आज्ञा का पालन नहीं किया । सारांश यह है कि अंग्रेज केवल दस्तकों के सम्बन्ध में अपने अधिकारों का ही दुरूपयोग नहीं कर रहे थे अपितु अनधिकार वे अपने यूरोपियन प्रतिद्वन्द्वियों से भय के बहाने अपनी बस्तियों की किलेबन्दी भी कर रहे थे । इसके परिणामस्वरूप नवाब को अंग्रेजों को दण्ड देने के लिए बाध्य होना पड़ा । वास्तव में यदि देखा जाए तो अंग्रेज अपराधी थे तथा उन्होंने नवाब की आज्ञा का उल्लंघन किया था । बंगाल में भी अंग्रेज दक्षिण भारत ( कर्नाटक ) के समान ही कुचक्र रच रहे थे । अलोवदों खाँ का संशय ठीक था । यही संशय सिराजुद्दौला के काल में युद्ध के रूप में प्रस्फुटित हुआ ।
प्रारंभिक घटना क्रम
1. कासिम बाजार की कोठी पर आक्रमण - अंग्रेजों को दण्ड देने का निश्चय करके सिराजुद्दौला ने 4 जून , 1756 ई . को कासिम बाजार में स्थित उनकी कोठी पर आक्रमण किया । सिराजुद्दौला अंग्रेजों को अपने देश से निष्कासित करने का संकल्प कर चुका था । कासिम बाजार में अंग्रेजों के जनरल वाइस के बिना युद्ध के आत्मसमर्पण कर दिया । इस समय यदि सिराजुद्दौला चाहता तो राजद्रोह के अपराध में अंग्रेजों को प्राणदण्ड दे सकता था परन्तु उसने अत्यन्त दयापूर्ण व्यवहार करके अंग्रेजों को छोड़ दिया ।
2. कलकत्ता की कोठी पर अधिकार - कासिम बाजार की विजय के उपरान्त नवाब ने अंग्रेजों के कलकत्ता फोर्ट विलियम दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान किया । कलकत्ता से पाँच मील दूरी पर स्थित तिन्नाह के दुर्ग पर नवाब और अंग्रेजों की सेना का युद्ध हुआ , जिसमें नवाब ने अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित किया । इस पर अंग्रेजों ने नवाब की सेना में फूट एवं द्रोह का बीजारोपण आरम्भ कर दिया । 18 जून , 1756 ई . को नवाब ने अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित किया । अंग्रेज अपनी प्राण रक्षा के निर्मित जहाजों में बैठकर फुल्टा नामक द्वीप में भाग गए तथा शेष अंग्रेजों ने हालवैल के नेतृत्व में दुर्ग की रक्षा का अंतिम प्रयास किया , जिसमें वे लोग सर्वथा असफल रहे और दुर्ग पर नवाब का अधिकार हो गया ।
3. कालकोठारी की दुर्घटना - हालवैल ने लिखा है- " - “ दुर्ग पर अधिकार करके नवाब के सैनिकों ने शेष बचे हुए 146 अंग्रेजों को एक छोटी - सी 18 वर्ग फुट की कोठरी में बन्द कर दिया । जून की भयंकर गर्मी में बन्दियों का दम घुट गया तथा प्रातः काल जब कोठरी खोली गई तो कुल 23 व्यक्ति जीवित निकले । शेष 123 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी थी । " इस काल कोठरी की दुर्घटना के विषय में विद्वानों को सन्देह है तथा यह दुर्घटना कपोलकल्पित मानी जाती है । यह दुर्घटना हालवैल ने मन - गढ़न्त दोषारोपण द्वारा सिराजुद्दौल के चरित्र को कलंकित करने के लिए कल्पित की थी । मैकाले ने तो इस घटना की आलोचना में अंग्रेजों के समस्त निन्दात्मक शब्दों का प्रयाग कर डाला था । क्या यह दुर्घटना हुई थी ? वास्तव में जितनी बड़ी कोठारी बताई गई है उसमें 146 व्यक्तियों को सामना सर्वथा असम्भव है तथा दुर्ग छोड़कर भागने के उपरान्त 146 व्यक्ति तो कुल मिलाकर भी दुर्ग में नहीं बचे थे । तत्कालीन लेखों एवं पत्रों में इस घटना का उल्लेख तक नहीं मिलता । क्लाइव तथा वाटसन ने जो पत्र नवाब को लिखे , उनमें भी इस घटना का उल्लेख कही नहीं है ।
4. कलकत्ता पर पुनः अधिकार- कलकत्ता को किलेदार मानिकचन्द के संरक्षण में छोड़कर नवाब पुनः अपनी राजधानी में आ गया परन्तु अंग्रेज कलकत्ता को पुनः प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे । मद्रास की सरकार ने कलकत्ता में अंग्रेजों की सहायता के लिए क्लाइव के नेतृत्व में स्थल सेना तथा वाटसन के नेतृत्व में जल सेना भेजी।
अंग्रेजों ने दिसम्बर 1756 ई . में पुनः कलकत्ता पर अधिकार करके कुण्डली एवं उसके आस - पास के प्रदेशों को लूटना प्रारम्भ कर दिया। नवाब ने समाचार सुनकर पुनः कलकत्ता के लिए प्रस्थान किया तथा 30 जनवरी , 1757 ई . को अंग्रेजों एवं नवाब के मध्य एक अनिर्णायक युद्ध हुआ । इस समय अंग्रेज तथा नवाब दोनों ही भीषण विपत्तियों में घिरे हुए थे । नवाब को अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण ने भयभीत कर दिया था तथा उसकी सेना में भी विश्वासघात के चिह्न दृष्टिगोचर होने लगे थे । दूसरी ओर अंग्रेजों को सप्तवर्षीय युद्ध आरम्भ हो जाने के कारण अत्यन्त असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा था । अतः युद्ध का निर्णय हुए बिना ही दोनों पक्षों में 9 फरवरी , 1757 ई . को अलीनगर की सन्धि हो गई।
5. अलीनगर की संधि - इस सन्धि के द्वारा कलकत्ता पर अंग्रेजों का अधिकार पुनः स्वीकार कर लिया गया तथा कलकत्ता की किलेबन्दी करने और सिक्के ढालने का अधिकार भी उन्हें प्रदान किया गया । इसके अतिरिक्त बंगाल , बिहार तथा उड़ीसा में अंग्रेजों को बिना चुगी दिए व्यापार करने की अनुमति भी प्रदान की गई । नवाब ने जो माल कम्पनी के कर्मचारियों से छीन लिया था , पुनः वापस कर दिया । इसके बदले में क्लाइव तथा वाटरसन ने लिखित रूप से नवाब को वचन दिया कि जब तक नवाब की ओर से सन्धि भंग नहीं होगी , अंग्रेज शान्तिपूर्वक व्यापार करते रहेंगे तथा पुनः कोई बाधा उपस्थित नहीं करेंगे ।
6. फ्रांसीसी शक्ति का विनाश- यूरोपीय शक्तियों पर इस समय अलीनगर की सन्धि तथा अंग्रेजों की शक्ति की धाक जम चुकी थी अतः क्लाइव ने फ्रांसीसी शक्ति के केन्द्र चन्द्रनगर को विचित करने की योजना बनाई । सप्तवर्षीय युद्ध आरम्भ होने के कारण यूरोप , अमेरिका तथा भारत तीनों स्थलों में अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों में युद्ध आरम्भ हो चुका था अतः क्लाइव ने चन्द्रनगर की ओर सेनाएँ लेकर प्रस्थान किया । नवाब इसी असमंजस में पड़ा रहा कि उसे अंग्रेजों का विरोध करना चाहिए अथवा नहीं और इसी समय क्लाइव ने मार्च 1759 ई . में चन्द्रनगर की बस्ती पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया । यह क्लाइव की महान् कूटनीतिक विजय थी क्योंकि चन्द्रनगर विजय ने अंग्रेजों की प्रतिद्वन्द्वी शक्ति का पूर्णतया अन्त कर दिया तथा फ्रांसीसियों द्वारा सिराजुद्दौला की सहायता का द्वारा बंद कर दिया ।
7. सिराजुद्दौला के विरूद्ध षड्यन्त्र फ्रांसीसियों का दमन करने के उपरान्त क्लाइव ने अपने प्रमुख शत्रु सिराजुद्दौला का विनाश करने के लिए षड्यन्त्र रचना आरम्भ कर दिया । इस कार्य के लिए उसने कुछ विद्रोही व्यक्तियों को चुना , जिसमें अमीचन्द ( अमीरचन्द ) , मीर जाफर तथा यार लतीफ खाँ मुख्य थे । अंग्रेजों ने मीर जाफर को , जो नवाब की सेना में उच्च पद पर आसीन था , नवाब बनाने का निश्चय किया । 8. मीर जाफर से गुप्त सन्धि -4 जून , 1757 ई . को अंग्रेजों ने मीर जाफर के साथ एक गुप्त सन्धि की , जिसमें यह निश्चय किया गया कि अंग्रेजों की सहायता से मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया जाएगा , जिसके बदले में वह अंग्रेजों को कलकत्ता , ढाका तथा कासिम बाजार की किलेबन्दी की अनुमति दे देगा तथा फ्रांसीसियों एवं उनकी बस्तियों को उनके हवाले कर देगा । अंग्रेजों की इस सहायता के बदले में मीर जाफर एक करोड़ रूपया कम्पनी को देगा तथा भविष्य में भी यदि उसे सैनिक सहायता की आवश्यकता पड़ेगी तो अंग्रेज उसकी सहायता करेंगे परन्तु सेना का व्यय नवाब देगा । नवाब बनने के तीस दिन के अन्दर मीर जाफर को ये सभी शर्ते स्वीकार कर लेनी होंगी ।
PDF NOTES of 4th Semester History भारत का
इतिहास 1700-1950 Unit 1 to 8 Notes in Hindi:
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