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4th Semester History
History of India C. 1700 – 1950
Unit 6 Part 1 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नींव
जब किसी राष्ट्र के नागरिक स्थान, वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, भाषा, साहित्य मूल्य, मान्यताओं, जाति, समूहों, धर्म आदि अंतर होते हुए भी सभी को एक समझते हैं, और राष्ट्रहित के समक्ष अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक हितों का परित्याग करते हैं वही भावना राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता कहलाती है।
प्रसिद्ध सामाजिक वैज्ञानिक बुकेकर राष्ट्रीयता को परिभाषित करते हैं "साधारण रूप में राष्ट्रीयता देश प्रेम की अपेक्षा देशभक्ति के अधिक व्यापक क्षेत्र की ओर संकेत करती है राष्ट्रीयता के स्थान के संबंध के साथ-साथ जाति भाषा इतिहास संस्कृति और परंपराओं के संबंध भी प्रदर्शित होते हैं।"
भारतीय राष्ट्रवाद का उदय-
आधुनिक युग में भारतीय राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद का उदय 1857 ई की क्रांति के समय से माना जाता है। इस विद्रोह को निर्मलता से कुचल दिया। इस ऐतिहासिक संग्राम के विरुद्ध अंग्रेजों ने कठोर नियम लागू किए। थॉमसन, गैरेट और मेलसेन द्वारा लिखित कुछ अंश अंग्रेजी दमन नीति को स्पष्ट करते हैं “हर एक हिंदुस्तानी जो अंग्रेजो की तरफ से नहीं लड़ रहा था उसे हत्यारा माना जाए दिल्ली निवासियों का कत्लेआम किया जाए।”
कुछ फांसी देने वाले लोग शौकिया थे जिन्होंने कलात्मक ढंग से लोगों को मारा।
अंग्रेजों ने क्रांति के बाद समय-समय पर शासन व्यवस्था में कुछ सुधार किए और शासन के कार्यों में थोड़ा-थोड़ा भारतीयों का सहयोग लोगों से आरंभ किया लेकिन सुधार की गति बहुत धीमी थी राष्ट्रवाद की लपटे तेजी से पल्लवित होने लगी।
सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने सन 1876 ईस्वी में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की। 1883 ईस्वी के अंतिम में कोलकाता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें एक अखिल भारतीय संगठन को मूर्त रूप देने की अनुशंसा की गई।
28 दिसंबर 1885 ई को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नींव पड़ी। बाद में स्वाधीनता संग्राम इतिहास भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास बन गया। राष्ट्रीय आंदोलन के संघर्ष में के समस्त वर्गों ने एकजुट होकर स्वतंत्रता प्राप्त की संघर्ष किया। राष्ट्रवाद की संकल्पना के विकास में स्वामी दयानंद, विवेकानंद, गोखले, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, अरविंद, रविंद्रनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू ने महती भूमिका निभाई।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म -
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान रहा है। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास है। कांग्रेस के जन्म के कारण यह कहा जाता है कि दिन-प्रतिदिन अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पड़ता जो भी कांग्रेस के जन्म का कारण बना। सुरेंद्रनाथ बनर्जी लिखते हैं कि "कोई भी स्वाभिमानी भारतीय तब आंख मूंदकर सुस्त बैठा नहीं रह सकता। जो इल्बर्ट बिल विवाद के महत्व को समझते थे उनके लिए यह देश भक्ति की महान पुकार थी।"
इस विवाद ने भारतीय शिक्षित वर्ग को संगठित राजनीतिक आंदोलन की आवश्यकता का पाठ पढ़ाया। यदि अब आगे राजनीतिक अधिकार और सुधार प्राप्त करना था तो देश व्यापी आंदोलन चलाने के लिए एक राष्ट्रीय संस्था की आवश्यकता थी, प्रथम राष्ट्रीय संस्था की स्थापना श्री सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने की थी | 1876 में उन्होंने इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की।
राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्मदाता: कांग्रेस की स्थापना का मुख्य श्रेय एक अवकाश प्राप्त आ.सी.एस. अफसर एलन ऑक्टवियस ह्यूम (ए.ओ.यूम) को दिया जा सकता हैं। उन्हें कांग्रेस का पिता कहा जाता है। ह्यूम एक उदारवादी अंग्रेज थे और भारत के साथ उसकी विशेष सहानुभूति थी। साथ ही वे एक अनुभवी और दूरदर्शी व्यक्ति भी थे।
अपनी दूरदर्शिता के कारण वे अच्छी तरह जान गये कि भारत में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध घोर असंतोष व्याप्त हैं और इसके लिये वे एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना करना चाहते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने 1883 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक खुला पत्र लिखा जो अत्यंत हृदयस्पर्शी था। इसमें उन्होंने देश के शिक्षित नवयुवकों से मातृभूमि की उन्नति के लिये प्रयन्त करने की अपील की ताकि " भारतीय राष्ट्र का बौद्धिक , सामाजिक और राजनीतिक पुनर्जागरण हो सके और उसके लिये अनुशासित और सुसज्जित सेना तैयार हो सके। " उन्होंने आगे कहा कि यदि पचास शिक्षित नवयुवक ही स्वार्थ त्याग कर देश की स्वतंत्रता के लिये संगठित होकर प्रयत्न करें तो आगे कार्य अत्यंत सरल हो सकता है। " ह्यूम के इस पत्र को शिक्षित भारतीयों पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना के विषय में सोचने लगे। इसी समय
1884 में मद्रास में थियोसॉफिकल सोसायटी के वार्षिक अधिवेशन के मौके पर मद्रास में दीवान रघुनाथराव के निवास स्थान पर देश के प्रमुख सत्रह व्यक्तियों की बैठक हुई। वहां एक देशव्यापी संगठन कायम करने का निश्चय किया गया। निश्चय के फलस्वरूप दिसम्बर 1884 में इंडियन नेशनल यूनियन नामक एक देशव्यापी संस्था की स्थापना हुई।
राष्ट्रीय कांग्रेस और लॉड डफरिन: ह्यूम महोदय ने अपनी योजना तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन के समक्ष रखी। ह्यूम नहीं चाहते थे कि इस देशव्यापी संगठन द्वारा राजनीतिक विषयों पर विवाद हो। लार्ड डफरिन ने ह्यूम की बात ध्यानपूर्वक सुनी और योजना के क्षेत्र को बढा दिया। उसने ह्यूम को परामर्श दिया कि वे संगठन को राजनीतिक रूप लेने दे। ब्योमेशचन्द्र बनर्जी के अनुसार ह्यूम के मस्तिष्क में सबसे पहले यह विचार आया था कि भारत के प्रधान राजनीतिज्ञ साल में एक वार एकत्र होकर सामाजिक विषयों पर चर्चा कर लिया करें। वे यह नहीं चाहते थे कि उनका चर्चा का विषय राजनीतिक रहे क्योंकि बम्बई , कलकत्ता , मद्रास और अन्य भागों में राजनीतिक मण्डल थे। लार्ड डफरिन ने ह्यूम साहब के विचार को राजनीतिक दिशा दी। उसने कहा कि इस संस्था को " इंग्लैण्ड की तरह यहां सरकार के विरोध का काम करना चाहिए। " उसने यह इच्छा व्यक्त की कि यहां के राजनीतिज्ञ प्रतिवर्ष अपना सम्मेलन किया करे और सरकार को बताया करे कि शासन में क्या - क्या त्रुटिया हैं और उसमें क्या सुधार किये जाये ? " इस प्रकार वायसराय लार्ड डफरिन का आशीर्वाद प्राप्त करके श्री हयूम इंग्लैण्ड गये। इंग्लैण्ड में उन्होंने भारतीय मामले में दिलचस्पी लेने वाले प्रमुख व्यक्तियों से इस प्रस्तावित संगठन की योजना के संबंध में विचार विमर्श किया। भारत लौटने से पूर्व उन्होंने इंडियन पार्लियामेंटरी कमेटी का संगठन किया जिसका उद्देश्य पार्लियामेंट के सदस्यों से यह प्रतीज्ञा करवाना था कि वे भारत के मामले में दिलचस्पी लेगें।
राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्मदाता: कांग्रेस की स्थापना का मुख्य श्रेय एक अवकाश प्राप्त आ.सी.एस. अफसर एलन ऑक्टवियस ह्यूम (ए.ओ.यूम) को दिया जा सकता हैं। उन्हें कांग्रेस का पिता कहा जाता है। ह्यूम एक उदारवादी अंग्रेज थे और भारत के साथ उसकी विशेष सहानुभूति थी। साथ ही वे एक अनुभवी और दूरदर्शी व्यक्ति भी थे। अपनी दूरदर्शिता के कारण वे अच्छी तरह जान गये कि भारत में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध घोर असंतोष व्याप्त हैं और इसके लिये वे एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना करना चाहते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने 1883 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक खुला पत्र लिखा जो अत्यंत हृदयस्पर्शी था। इसमें उन्होंने देश के शिक्षित नवयुवकों से मातृभूमि की उन्नति के लिये प्रयन्त करने की अपील की ताकि " भारतीय राष्ट्र का बौद्धिक , सामाजिक और राजनीतिक पुनर्जागरण हो सके और उसके लिये अनुशासित और सुसज्जित सेना तैयार हो सके। " उन्होंने आगे कहा कि यदि पचास शिक्षित नवयुवक ही स्वार्थ त्याग कर देश की स्वतंत्रता के लिये संगठित होकर प्रयत्न करें तो आगे कार्य अत्यंत सरल हो सकता है। " ह्यूम के इस पत्र को शिक्षित भारतीयों पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना के विषय में सोचने लगे। इसी समय 1884 में मद्रास में थियोसॉफिकल सोसायटी के वार्षिक अधिवेशन के मौके पर मद्रास में दीवान रघुनाथराव के निवास स्थान पर देश के प्रमुख सत्रह व्यक्तियों की बैठक हुई। वहां एक देशव्यापी संगठन कायम करने का निश्चय किया गया।
निश्चय के फलस्वरूप दिसम्बर 1884 में इंडियन नेशनल यूनियन नामक एक देशव्यापी संस्था की स्थापना हुई।
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