4th Semester History | History of India 1700-1950 | Unit 6 Part 2 | उपनिवेशवाद की आलोचना (उदारवादी, चरमपंथी और उग्रवादी राष्ट्रवादी) | DU SOL NCWEB Study Notes | BA PROG,BA,HONS

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4th Semester History

History of India C. 1700 – 1950

Unit 6      Part 2

उपनिवेशवाद की आलोचना (उदारवादीचरमपंथी और उग्रवादी राष्ट्रवादी)


राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण उदारवादी युग या सुधारवादी कहा जाता है। इसे कांग्रेस का शैशवकाल कहते है। 1885 से 1905 ई. तक कांग्रेस पर उदारवादियों का एकाधित्व थाजो ब्रिटिश सरकार के प्रति सहयोग की नीति के समर्थन थे। इस समय कांग्रेस का लक्ष्य भारतीय शासन में छोटे - मोटे सुधार प्राप्त करना था।

उनके अस्त्र प्रस्ताव एवं प्रतिनिधि मण्डल थे। ये नरम नीति का अनुसरण करते थे। इसलिये ये उदारवादी कहलाये एवं उनका कार्यक्रम राजनीतिक भिक्षा वृत्ति के नाम से विख्यात हुआ।

इस समय के उदारवादी नेता दादा भाई नौरोजीउमेश चन्द्र बनर्जीसुरेन्द्र नाथ बनर्जीफीरोज शाह मेहतालाल मोहन घोषरासबिहारी घोषगोपालकृष्ण गोखले आदि थे।

कांग्रेस ने अपने प्रारंभिक काल में शासन के समस्त क्षेत्रों में जो भांगें सरकार के सामने पेश की जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख थीं –

 

1. धारा - सभाओं का विस्तार हो तथा उनमें जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि सदस्य हो।

2. केन्द्रीय एवं प्रान्तीय धारा - सभाओं में भारतीय सदस्यों की संख्या में वृद्धि हो।

3. न्याय प्रशासन में जूरी प्रथा का प्रयोग हो।

4. देश में औद्योगिक शिक्षा का प्रचार होशस्त्र कानून में संशोधन हो एवं भारत - सचिव का येतन ब्रिटिश सरकार देशासन सम्बन्धी सुधारों के साथ - साथ कांग्रेस ने साम्राज्यवादी नीति एवं सरकार कीआर्थिक नीति का विरोध किया एवं देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं के समाधान की मांग की।

इसकी प्रमुख मांगे निम्नलिखित थी-

 

1.    भूमि - कर तथा अन्य करों में कमी हो

2.   सिंचाई की उचित व्यवस्था तथा कृषि बैंकों की स्थापना हो।

3.   भारतीय उद्योग - धंधों को प्रोत्साहन मिले विदेशों में निर्यात किये जाने वाले अनाज पर प्रतिबंध लगे एवं विदेशी मालो पर भारी चुंगी लगे।

4.   शासन संबंधी व्यय में कमी हो एवं विदेशियों को कम संख्या में नियुक्त किया जाए कांग्रेस ने विदेशी उपनिवेशों में बसे भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों का भी विरोध किया एवं दक्षिण अफ्रीका के उपनिवेशों के भारतवासियों की उपेक्षा करने वाले कानूनों की आलोचना की।

 

 

उदारवादी नेता एवं उनके कार्य

 

1- दादा भाई नौरोजी - दादाभाई नौरोजी का जन्म सितम्बर, 1825 ई. में हुआ था। इनका विद्यार्थी जीवन बड़ा ही सफल रहा। शिक्षा प्राप्त कर लेने के पश्चात् उन्होंने स्कूल में नौकरी कर ली एवं गणित के शिक्षक के रूप में बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की दादा भाई नौरोजी को " भारत का ओजस्वी पितामाह (Grand old man of India) कहा जाता।

 

उन्होंने 61 वर्ष तक राष्ट्र की सेवा की 40 वर्ष तक कांग्रेस की स्थापना के पूर्व एवं 21 वर्ष तक उसके बाद उन्होंने कांग्रेस को प्रशासन संबंधी शिकायतों को दूर करने वाली संस्था की तुच्छ स्थिति से उठाकर राष्ट्रीय संस्था की गौरवपूर्ण स्थिति तक पहुंचायादादा भाई नौरोजी ने 1886, 1893 और 1906 ई. में कांग्रेस के सभापति का पद ग्रहण किया।

 

उन्होंने अपने जीवन काल में कम से कम तीस संस्थाऐं स्थापित की। उनमें से अधिकांश का उद्देश्य देश की राजनीतिक उन्नति करना था। उन्होंने शिक्षा एवं समाज सुधार के लिये भी संस्थाऐं खोली।

बम्बई एसोशियेशन नामक प्रान्तीय राजनीतिक संस्था की स्थापना में उनका प्रमुख हाथ था। देश - हित के लिये समर्थन प्राप्त करने के हेतु उन्होंने इंग्लैण्ड में एक ब्रिटिश इंडियन सोसायटी की स्थापना  की। कुछ समय तक बड़ौदा के प्रधानमंत्री रहे तथा यहां पर उन्होंने कई सुधार कार्य किये।

 

गोपालकृष्ण गोखले गोखले का जन्म 1866 ई. में महाराष्ट्र के एक निर्धन ब्राहमण परिवार में हुआ था। 1884 ई. में स्नातक होने के पश्चात वे दक्षिण - शिक्षा समिति में सम्मिलित हुए। वे पहले पूना में स्कूल के अध्यापक बने परन्तु शीघ्र ही यह स्कूल फर्ग्यूसन कालेज बन गया एवं 1902 ई. में गोखले ने इसी कालेज में प्रिंसिपल के पद से अवकाश प्राप्त किया।

 

1888 ई. में गोखले पूना की प्रसिद्ध संस्था सार्वजनिक सभा के मंत्री बने। वे इस सभा के प्रमुख पत्र क्वार्टरली रिब्यू के संपादक भी बन गये। 1889 ई. में गोखले कांग्रेस के सदस्य बन गये 1895 ई में ये कांग्रेस के मंत्री बन गये। ये कई वर्षों तक कांग्रेस की बम्बई शाखा के मंत्री रहे।

 

उन्होंने केवल 39 वर्ष की उम्र में 1905 ई. में कांग्रेस के अध्यक्ष का भार संभाला। अंग्रेज शासकों को भारतीय जनमत से अवगत कराने के लिये उन्हें दो बार इंग्लैण्ड भेजा गया।

 

1905 ई. में उन्होंने सर्वेन्ट्स आफ इंडिया सोसायटी नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था का उद्देश्य देश के युवकों को देशभक्तिसमाज सेवा तथा कर्तव्य परायणता की शिक्षा देना था। उन्हो ने 1892 ई. के भारतीय परिषद् अधिनियम की कठोर आलोचना की तथा 1909 ई. के माले मिटो सुधार अधिनियम के निर्माण में काफी हाथ बंटाया|

1912 ई. में गोखले दक्षिणी अफ्रीका गये वहां उन्होंने रंग - भेद नीति के विरू संघर्ष में महात्मा गांधी का साथ दिया। उनके प्रयास के फलस्वरूप ही महात्मागाधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। लार्ड विलंगडन के कहने पर गोखले ने एक सुधार योजना तैयार की जो गोखले की राजनीति बसीयतनामा के नाम से प्रकाशित हुआ। 19 फरवरी 1915 ई को गोखले का देहान्त हो गया।

 

श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी - सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म 1848 ई. में बंगाल में हुआ 20 वर्ष की उम्र में ये बी.ए. पास करके इंग्लैण्ड गये। ये प्रथम भारतीय थे जिन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता प्राप्त की। परन्तु कुछ कारणवश उन्हें पद से हटा दिया गया| उन्होंने इसके विरुद्ध क्वीस बेंच में अपील कीजिसमें उन्हें सफलता मिली ये सिलहट में मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए।

 

परन्तु वे दो वर्षों के बाद उनके सरकारी आचरण पर दोषारोपण कर उन्हें पुनः पद से हटा दिया गया। पद से हटा देने के कारण निराधार था एवं उन्हें नौकरी से हटाना सर्वथा अन्यायपूर्ण था। सरकारी नौकरी से अलग होने के बाद कलकत्ता के मेट्रोपोलिटन कालेज में अध्यापक बन गये कुछ समय के बाद उन्होंने अपना एक स्कूल खोला जो बाद में रिपन कालेज बन गया।

 

अब श्री बनर्जी राष्ट्र सेवा में लग गये ये दो बार सन् 1885 एवं 1902 ई. में कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1876 ई. में उन्होंने इंडिया एसोसियेशन नामक संस्था की स्थापना कीजिसका एक मात्र उद्देश्य ICS (Indian Civil Service) की परीक्षा में भर्ती होने वाले परीक्षार्थियों की उम्र में सरकार द्वारा कमी करने के आदेश का विरोध करना था।

 

कांग्रेस की स्थापना के पूर्व ही उन्होंने राष्ट्रीय सम्मेलन की स्थापना की थी एवं राष्ट्रीय चेतना की नींव डाली थी कांग्रेस की स्थापना में उन्होंने सक्रिय रूप से हाथ बंटाया था। बंग - भंग का उन्होंने कड़ा विरोध किया तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिये आन्दोलन चलाया। ये बंगाल की प्रान्तीय धारा सभा के भी सदस्य चुने गये।

 

सर फीरोजशाह मेहता - सर फिरोजशाह भी एक उदारवादी नेता थे दादाभाई नौरोजी के अनुयायी थे इंग्लैण्ड से विद्याध्ययन के पश्चात् वे 1868 ई. में भारत लोटे एवं जन सेवा कार्यों में लग गये।

अन्य उदारवादी नेताओं की तरह ही सर मेहता अंग्रेजों की न्यायप्रियतासत्यता तथा ईमानदारी में विश्वास करते थे।

 

1890 ई. में वे कांग्रेस के छठे अधिवेशन में सभापति निर्वाचित हुएसर फीरोजशाह का कार्यक्षेत्र बंबई कारपोरेशनवायसराय की कौंसिल बबई प्रान्तीय सभाकांग्रेस की समितियां एवं प्रतिनिधि मण्डल इत्यादि थे। सन 1909 ई. में उन्होंने सूरत अधिवेशन के समय नरम दल वालों का साथ दिया एवं 1909 ई. में पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। सन् 1915 ई में उनका देहान्त हो गया।

 

प्रारंभिक राष्ट्रवादियों के कार्यों का मूल्यांकन कुछ आलोचकों के मतानुसार भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में नरमपंथियों का नाममात्र का योगदान था इसीलिये ये अपने चरण में कोई ठोस उपलब्धि हासिल नहीं कर सके।

इन आलोचकों का दावा है कि अपने प्रारंभिक चरण में कांग्रेस शिक्षित मध्य वर्ग अथवा भारतीय उद्योगपतियों का ही प्रतिनिधित्व करती थी।

 

उनकी अनुनय - विनय की नीति को आंशिक सफलता ही मिली तथा उनकी अधिकांश मांगे सरकार ने स्वीकार नहीं की निःसंदेह इन आलोचनाओं में पर्याप्त सच्चाई है किंतु नरमपंथियों की कुछेक उपलब्धियां भी थीजिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जैसे

 

1. उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज को नेतृत्व प्रदान किया।

2. साझा हित के सिद्धांतों पर आम सहमति बनाने एवं जागृति लाने में वे काफी हद तक सफल रहे। उन्होंने भारतवासियों में इस भावना की ज्योति जलाई कि सभी के एक ही शत्रु ( अंग्रेज ) हैं तथा सभी भारतीय एक ही राष्ट्र के नागरिक हैं।

3. उन्होंने लोगों को राजनीतिक कार्यों में दक्ष किया तथा आधुनिक विचारों की लोकप्रिय बनाया।

4. उन्होंने उपनिवेशवादी शोसन की आर्थिक शोषण की नीति को उजागर किया।

5. नरमपंथियों के राजनीतिक कार्य दृढ विश्वासों पर अविलम्बित थे ने उथली भावनाओं पर।

6. उन्होंने इस सच्चाई को सार्वजनिक किया कि भारत का शासनभारतीयों के द्वारा उनके हित में हो।

7. उन्होंने भारतीयों में राष्ट्रवाद एवं लोकतांत्रिक विचारों एवं प्रतिनिधि कार्यक्रम विकसित कियाजिससे बाद में राष्ट्रीय आंदोलन को गति मिली।

8. उन्हीं के प्रयासों से विदेशों विशेषकर इंग्लैण्ड में भारतीय पक्ष को समर्थन मिल सका।

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