DU SOL NCWEB The Learners Community DU SOL 6th Semester SEC Political Science संघर्ष और शांति निर्माण Conflict and Peace Building Unit 1 Part A संघर्ष की समझ


संघर्ष की पृष्ठभूमि:

प्राचीन काल से ही मानव समाज में संघर्ष का अवश्यकता और महत्व जाना जाता रहा है। प्रसिद्ध विचारकों जैसे मैकियावेली और थॉमस हॉब्स ने मानव स्वभाव और समाजिक नियमों के माध्यम से संघर्ष की धारणा को समझाया। उनके मानने के अनुसार, संघर्ष मानव स्वभाव का एक प्राकृतिक अंश है और इसका समाधान सामाजिक अवधारणाओं में होना चाहिए।

मैकियावेली और हॉब्स के सिद्धांतों के अनुसार, समाज में अधिकारी व्यक्ति को पूर्ण शक्ति देनी चाहिए ताकि वह संघर्ष और अराजकता के खिलाफ समाज को संरक्षित कर सके। इस तरह के विचार लोगों को राज्य के प्रभाव में रखते हैं जिससे अनुशासन और शांति सुनिश्चित हो सके।

संघर्ष का समाधान केवल शांति, समाजिक साझेदारी, और संबंधों के सहयोग से ही संभव होता है। इससे लोगों के बीच समझदारी और सम्मान का वातावरण बनता है जो समाज को और मजबूत बनाता है।

 

संघर्ष की परिभाषा और उसके चरण:

संघर्ष एक ऐसी स्थिति है जो दो व्यक्तियों या एक समूह के बीच मुद्दों और विचारों के अंतर से उत्पन्न होता है। यहां तक कि हम अपने आसपास राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी संघर्ष के कई उदाहरण देख सकते हैं।

1.    अंतर्व्यक्तिगत संघर्ष (Intrapersonal Conflict): जब एक व्यक्ति के अंदर ही संघर्ष होता है, तब इसे अंतर्व्यक्तिगत संघर्ष कहते हैं। उदाहरण के लिए, किसी को कोई निर्णय लेने में दुविधा होना और स्वार्थ और उत्कृष्टता के बीच युद्ध करना इसका उदाहरण हो सकता है।

2.    पारस्परिक संघर्ष (Interpersonal Conflict): दो व्यक्तियों या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष को पारस्परिक संघर्ष कहा जाता है। इसमें व्यक्तियों के बीच विभिन्न मतभेद, रुचियाँ, या उद्देश्यों के अंतर के कारण झगड़ा हो सकता है।

3.    अंतःसमूह संघर्ष (Intragroup Conflict): यह संघर्ष एक ही समूह के सदस्यों के बीच होता है। इसमें समूह के सदस्यों के बीच विभिन्न उद्देश्यों, मूल्यों, या दृष्टिकोणों के अंतर के कारण मतभेद होता है।

4.    अंतरसमूह संघर्ष (Intergroup Conflict): इसमें दो या दो से अधिक समूहों के बीच संघर्ष होता है। यहां भिन्न समूहों के बीच विभिन्न उद्देश्यों, स्वार्थ, या रुचियों के कारण मतभेद हो सकता है।

इन चरणों में, अंतर व्यक्तिगत संघर्ष एक व्यक्ति के अंदर होता है, पारस्परिक संघर्ष दो व्यक्तियों के बीच, अंतःसमूह संघर्ष एक ही समूह के सदस्यों के बीच, और अंतरसमूह संघर्ष विभिन्न समूहों के बीच होता है। इन संघर्षों को समझ कर, हम संघर्ष को नियंत्रित करने और समाधान करने के लिए उपाय बना सकते हैं ताकि समाज में शांति और सहयोग का माहौल बना रहे।

 

संघर्ष के चरणों को समझना:

1.    स्थायी शांति (Permanent Peace): यह वह स्थिति है जहां दोनों पक्षों के बीच तनाव कम होता है और वे एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। इसमें आर्थिक, पर्यावरण, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग शामिल होता है।

2.    अस्थाई शांति (Temporary Peace): इसमें तनाव बहुत अधिक होता है और शांति की गारंटी नहीं दी जा सकती।

3.    शारीरिक धमकी (Physical Threat): यह एक खुला संघर्ष है जिसमें दोनों पक्ष आपस में भिड़ जाते हैं। यहां तक कि सेना को शामिल करने की भी बात होती है।

4.    शस्त्रों की होड़ (Armed Conflict): यह स्थिति तीव्र हिंसा को शामिल करती है और स्थिर शांति बहुत दूर होती है। इसमें हथियारों का इस्तेमाल होता है।

ये चारों चरण संघर्ष के विभिन्न रूपों को दर्शाते हैं। शांति की स्थिति को स्थायी बनाने के लिए समझदारी से संघर्ष का सामना करना और समाधान ढूंढना महत्वपूर्ण है।

 

संघर्ष के संकेतों को पहचानना:

1.    आर्थिक असमानता: जब समाज में धन का असमान वितरण होता है और सभी लोगों के लिए सामान्य संसाधनों की पहुंच नहीं होती है, तो इससे समाज में विवाद और संघर्ष उत्पन्न होता है।

2.    राजनीतिक विवाद: जब विभिन्न राजनीतिक विचारों और धाराओं के बीच मतभेद होता है, तो इससे राजनीतिक संघर्ष पैदा होता है।

3.    सामाजिक और सांस्कृतिक विवाद: जब समाज में कई धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और लिपियाँ होती हैं और इनमें भिन्नता होती है, तो इससे सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष उत्पन्न होता है।

4.    सैन्य मुद्दे: जब हालात इतने बुरे होते हैं कि सेना को लागू किया जाता है और हिंसा के द्वारा संघर्ष होता है, तो इसे सैन्य संघर्ष कहा जाता है।

5.    भू-राजनीतिक मुद्दे: जब भूमि और भौगोलिक स्थान से संबंधित मुद्दों को लेकर राजनीतिक संघर्ष होता है, तो इसे भू-राजनीतिक संघर्ष कहा जाता है।

6.    न्यायिक और कानूनी मामले: जब कानून और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में मतभेद होता है, तो इससे न्यायिक और कानूनी संघर्ष उत्पन्न होता है।

इन संकेतों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें संघर्ष के कारणों और समाधान के दिशानिर्देश प्राप्त होते हैं।

 

संकट की रोकथाम को पहचानना:

महात्मा गांधी के आंदोलन में शांति और अहिंसा का अहम रोल रहा। उन्होंने हमेशा यह सिखाया कि संकटों का सामना शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से किया जाना चाहिए। उन्होंने यह बताया कि अहिंसा से ही समाज में एकता और भाईचारा बढ़ सकता है, जो समाज में प्रेम और शांति को बढ़ावा देता है।

नेल्सन मंडेला भी दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ गांधीवादी दृष्टिकोण को अपनाया। मार्टिन लूथर किंग और अब्राहम लिंकन जैसे अन्य नेताओं ने भी शांतिपूर्ण तरीके से अपने देशों में भेदभावपूर्ण नीतियों का विरोध किया।

अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से, समाज में हिंसा और अशांति को रोका जा सकता है। शांति और अहिंसा के उपयोग से, लोगों का मानसिक विकास होता है और स्थायित्व की दिशा में बदलाव आता है।

संकट के दौरान, समाज में संरचना को मजबूत करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता होती है। शांति का मतलब सिर्फ हिंसा की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक एवं साथी सुस्ती की स्थिति है।

इस प्रकार, मानवीय संघर्षों के लिए संकट की रोकथाम में शांति, पहचान, और समर्थन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह सुनिश्चित करता है कि समाज में समाधान के लिए सकारात्मक और सही कदम उठाए जा सकें।

 

संयुक्त राष्ट्र संगठन और संघर्ष की भूमिका:

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में संयुक्त राष्ट्र संगठन (UNO) की स्थापना हुई। इसका मुख्य उद्देश्य था विभिन्न राज्यों के बीच संघर्ष को रोकना और समाज में शांति को बढ़ावा देना। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि संघर्ष न केवल राज्यों को प्रभावित करता है, बल्कि यह विश्व के शांति और सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है। UNO युद्धों और संघर्षों को रोकने का प्रमुख साधन है।

UNO का उद्देश्य संघर्षों को समाप्त करने और संघर्ष के लिए समाधान खोजने में सहायता करना है। यदि कोई संघर्ष गंभीर हो जाता है, तो UNO इसमें हस्तक्षेप कर सकता है और शांति सेना की मदद से समाधान ढूंढ सकता है। UNO युद्धों को रोकने और संघर्षों को समाधानित करने के लिए अपनी शांति सेनाएँ भी भेज सकता है।

शीत युद्ध के बाद, UNO ने बाल्कन में युद्ध, रवांडा में नरसंहार, और अन्य आंतरिक संघर्षों को संबोधित करने में सक्रियता दिखाई। यह सुनिश्चित करता है कि संघर्षों को तुरंत और सही तरीके से समाधान किया जाए और शांति बनाए रखा जाए।

UNO द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट और सुझाव संघर्षों को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करते हैं। UNO द्वारा कई प्रस्तावों को पारित किया गया है जो संघर्षों को रोकने और समाधानित करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, UNO द्वारा विश्व बैंक और आईएमएफ की मदद से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है ताकि संघर्षों के मूल कारणों को समाधान किया जा सके। UNO के द्वारा शांति सेनाएँ भेजी जा सकती हैं ताकि संघर्षों को रोका जा सके और शांति बनाए रखा जा सके।

UNO की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राष्ट्रों को संघर्षों को रोकने और समाधानित करने में मदद करता है और विश्व के शांति और सुरक्षा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

संघर्ष की रोकथाम के लिए कार्रवाई:

संघर्ष की रोकथाम के लिए कार्रवाई का मतलब है जिन प्रयासों के माध्यम से संघर्ष को रोका जा सकता है और शांति का माहौल बनाया जा सकता है। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जो समय-समय पर बदलती रहती है। संघर्ष की रोकथाम के लिए विभिन्न स्तरों - अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, उपक्षेत्रीय, और स्थानीय - के बीच समन्वय और सहयोग की आवश्यकता होती है। यह समाधानों की खोज में मदद करता है जो संघर्ष को बिना हिंसा के समाधानित कर सकते हैं।

संघर्ष की रोकथाम के प्रयासों से हमने सीखा है कि शांतिपूर्वक संघर्ष को संभालने और समाधान करने के लिए समाजों की क्षमता का निर्माण किया जा सकता है। यह सामाजिक संघर्षों को समाधानित करने के लिए सभी समुदायों को शामिल करने और उनके सहयोग को प्रोत्साहित करने का माध्यम बन सकता है।

संघर्ष प्रबंधन और निबटान कैसे करें:

संघर्ष प्रबंधन के कुछ महत्वपूर्ण नियम हैं:

1.    स्थानीय संघर्ष का समाधान: संघर्ष की स्थिति को पहचानकर संघर्ष को कम किया जा सकता है।

2.    संघर्ष कारकों की पहचान: संघर्ष को प्रेरित और कम करने में मदद करने वाले कारकों का पता लगाना महत्वपूर्ण है।

3.    प्रभावी प्रतिक्रिया की योजना: संघर्ष को समाधानित करने के लिए प्रभावी प्रतिक्रियाओं की योजना बनाना जरूरी है।

ये सभी उपाय संघर्ष की रोकथाम और समाधान के लिए महत्वपूर्ण हैं और एक शांतिपूर्ण वातावरण को बनाए रखने में मदद करते हैं।

 

संघर्ष प्रबंधन, निपटान और रोकथाम के बीच अंतर:

a. विरोधाभास प्रबंधन: युद्धों और संघर्षों को समाप्त करना आसान काम नहीं होता है। इसमें समझौता, सर्वसम्मति-निर्माण और आपसी विश्वास शामिल होते हैं। शांति को बढ़ावा देने के लिए बातचीत की जानी चाहिए, लेकिन युद्ध में शामिल लोगों के लिए दुश्मनों की मांग को स्वीकार करना मुश्किल होता है। जब प्रमुख मुद्दों पर समझौते होते हैं, तो शांति का स्तंभ मजबूत होता है। यह समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन को भी ला सकता है।

b. संघर्ष समझौता: इसमें विवादों के निपटान के लिए समझौता की भूमिका होती है। इसमें सामाजिक मानदंडों को बनाए रखने के लिए जबरदस्ती पुलिसिंग का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि विवादों को कानूनी प्रक्रियाओं और बातचीत पर आधारित हल किया जाता है। इससे समाज में स्थिरता में योगदान होता है।

c. युद्ध वियोजन और अहिंसा: युद्ध और संघर्ष को हल करने के लिए दो तरीके हैं - हिंसा और अहिंसा। गांधीवादी दृष्टिकोण के अनुसार, अहिंसा ही सबसे उत्तम तरीका है। यह मानते हैं कि समस्याओं को अहिंसात्मक तरीके से हल किया जा सकता है, जिससे सम्पूर्ण समुदाय को लाभ हो।

 

सत्याग्रही की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1.    भरोसा और सहयोग: सत्याग्रही को अपने प्रतिद्वंद्वी पर भरोसा करना चाहिए और वह उसके साथ सहयोग करने की कोशिश करता है।

2.    अधिक कठोरता से बचाव: सत्याग्रही को अपने विरोधियों को स्वयं से अधिक कठोर नहीं आंकना चाहिए। वह शांतिपूर्वक और सहयोगपूर्वक उनसे वार्ता करता है।

3.    समझौता की तैयारी: सत्याग्रही को गैर जरूरी चीजों पर समझौता करने के लिए तैयार रहना चाहिए, यदि वह समाधान की समझदारी से सम्मान और समाधान को प्राप्त कर सकता है।

4.    न्याय की लड़ाई: सत्याग्रही को न्याय के लिए लड़ना चाहिए, अन्याय के लिए नहीं। उसके लिए व्यक्तिगत ईमानदारी और उत्कृष्टता आवश्यक है।

5.    उद्देश्य का स्पष्टीकरण: सत्याग्रही को संघर्ष के उद्देश्य के बारे में स्पष्ट होना चाहिए, ताकि वह अपने कार्रवाई को उद्देश्यानुसार समझ सके।

इसके अलावा, संघर्ष समाधान का अर्थ है संघर्ष में असंगतियों की पहचान करना और प्रत्येक पक्ष के अस्तित्व के लिए परस्पर सम्मान रखना। इसे शांतिपूर्वक और सहयोगपूर्वक हल करने की कोशिश किया जाता है। इसमें सभी पक्षों के बीच बातचीत और समझौता की प्रक्रिया शामिल होती है।

अहिंसक और हिंसक संघर्ष में अंतर:

अहिंसक संघर्ष:

  • विधि: शांतिपूर्ण तरीकों का उपयोग करके विरोध प्रदर्शन, बहिष्कार, और नागरिक अवज्ञा जैसे तरीकों का उपयोग करता है।
  • उद्देश्य: विरोधी को हराने या नुकसान पहुंचाने के बजाय, उन्हें अपनी गलती समझने और परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करना।
  • उदाहरण: महात्मा गांधी द्वारा भारत में स्वतंत्रता आंदोलन, मार्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन।

हिंसक संघर्ष:

  • विधि: शारीरिक बल, हथियारों और हिंसा का उपयोग करके विरोधी को हराने या उन्हें डराने का प्रयास करता है।
  • उद्देश्य: विरोधी को हराना, उनसे जीत हासिल करना, या उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए मजबूर करना।
  • उदाहरण: युद्ध, आतंकवादी हमले, दंगे।

अहिंसक और हिंसक संघर्ष के बीच मुख्य अंतर:

  • उपयोग की जाने वाली विधि: अहिंसक संघर्ष शांतिपूर्ण तरीकों का उपयोग करता है, जबकि हिंसक संघर्ष शारीरिक बल और हिंसा का उपयोग करता है।
  • उद्देश्य: अहिंसक संघर्ष का उद्देश्य विरोधी को समझाना और परिवर्तन के लिए प्रेरित करना है, जबकि हिंसक संघर्ष का उद्देश्य विरोधी को हराना या डराना है।
  • परिणाम: अहिंसक संघर्ष में विरोधी पक्षों के बीच स्थायी शांति और समझ स्थापित हो सकती है, जबकि हिंसक संघर्ष में अक्सर अधिक हिंसा, घृणा और अस्थिरता पैदा होती है।

अहिंसक संघर्ष के कुछ फायदे:

  • नैतिक रूप से बेहतर: यह एक नैतिक रूप से बेहतर विकल्प है क्योंकि इसमें हिंसा का उपयोग नहीं होता है।
  • अधिक समावेशी: यह सभी लोगों को भाग लेने का अवसर प्रदान करता है, चाहे उनकी शारीरिक क्षमता या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
  • अधिक प्रभावी: यह दीर्घकालिक परिवर्तन लाने में अधिक प्रभावी हो सकता है क्योंकि यह विरोधी पक्षों के बीच स्थायी शांति और समझ स्थापित कर सकता है।

अहिंसक संघर्ष के कुछ नुकसान:

  • धीमा: यह धीमी गति से हो सकता है और इसमें परिणाम दिखने में अधिक समय लग सकता है।
  • कम प्रभावी: यह कुछ स्थितियों में कम प्रभावी हो सकता है, जैसे कि जब विरोधी पक्ष हिंसा का उपयोग कर रहा हो।
  • अधिक कठिन: यह हिंसक संघर्ष की तुलना में अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

हिंसक संघर्ष के कुछ फायदे:

  • तेज: यह अहिंसक संघर्ष की तुलना में तेज़ी से परिणाम दिखा सकता है।
  • प्रभावी: यह कुछ स्थितियों में अधिक प्रभावी हो सकता है, जैसे कि जब विरोधी पक्ष हिंसा का उपयोग कर रहा हो।
  • आसान: यह अहिंसक संघर्ष की तुलना में आसान और कम चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

हिंसक संघर्ष के कुछ नुकसान:

  • नैतिक रूप से गलत: यह एक नैतिक रूप से गलत विकल्प है क्योंकि इसमें हिंसा का उपयोग होता है।
  • कम समावेशी: यह उन लोगों को भाग लेने का अवसर नहीं देता है जो हिंसा का उपयोग नहीं करना चाहते हैं।
  • कम प्रभावी: यह दीर्घकालिक परिवर्तन लाने में कम प्रभावी हो सकता है क्योंकि यह विरोधी पक्षों के बीच अधिक हिंसा, घृणा और अस्थिरता पैदा कर सकता है।

निष्कर्ष:

अहिंसक और हिंसक संघर्ष दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं। यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी स्थिति के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें।

 

Q & A

1. संघर्ष के अर्थ और विकास को परिभाषित करें।

Ans:  संघर्ष और विकास दो प्रमुख और अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द हैं जो समाज, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करते हैं।

संघर्ष (Conflict):

संघर्ष एक प्रकार का सामाजिक, मानविक या व्यक्तिगत टकराव है, जो अलगाव, मतभेद और आपसी विरोध की स्थिति को उत्पन्न करता है। यह सामाजिक प्रक्रिया विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे संसाधनों की अभाव, विशेषाधिकार, और व्यक्तिगत मतभेद। संघर्ष दो रूपों में हो सकता है: सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक संघर्ष, जैसे कि विचारों की विभिन्नता से समृद्धि और नवाचार उत्पन्न हो सकती है, जबकि नकारात्मक संघर्ष विवाद, आत्मघाती कार्यों, और असमानता को बढ़ा सकता है। संघर्ष सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है, लेकिन यह भी आपसी सहमति, समझौता, और समाधान की आवश्यकता को जताता है।

विकास (Development):

विकास एक सामाजिक, आर्थिक, और मानविक प्रक्रिया है जो समाज के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समृद्धि और समानता को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करती है। विकास के प्रमुख लक्ष्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता, और सामाजिक समानता शामिल हो सकते हैं। विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में निवेश, प्रौद्योगिकी का उपयोग, और सामाजिक संरचनाओं में सुधार की आवश्यकता होती है। विकास एक निरंतर प्रक्रिया होती है जो समाज के विभिन्न पहलुओं को समृद्धि की दिशा में अग्रसर करती है। यह आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक और मानविक विकास को भी समर्थ बनाता है।

विकास के माध्यम से, समाज में आर्थिक समृद्धि, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है, जो सामाजिक समानता को प्राप्त करने में मदद करता है। विकास निरंतर प्रक्रिया है जो लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और सामाजिक समृद्धि को प्रोत्साहित करती है।

इस प्रकार, संघर्ष और विकास दोनों ही समाज में प्रावृट्तिक प्रक्रियाओं के महत्वपूर्ण पहलु हैं, जो समृद्धि, सामान्यता, और सामाजिक समानता की दिशा में सहायक होते हैं।

 

2. संघर्ष समाधान के गाँधीवादी दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं?

Ans:
संघर्ष को गांधीवादी दृष्टिकोण से समझने का मतलब है कि समस्याओं और विवादों को शांतिपूर्ण और सहमतिपूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए। महात्मा गांधी ने सत्याग्रह, अहिंसा, और आपसी समझ को समाधान के माध्यम के रूप में बताया।

गांधीवादी दृष्टिकोण के अनुसार, संघर्ष समस्याओं को हल करने का माध्यम नहीं होना चाहिए, बल्कि विवादों को शांति, समझौता, और आत्मसमर्पण के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए। यहां कुछ मुख्य बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है:

1.    अहिंसा (Non-violence): गांधीवादी दृष्टिकोण में संघर्ष को हल करने का माध्यम अहिंसा होता है। यहां विभाजन और विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाता है और विरोधी पक्ष के साथ आत्मसमर्पण और समझौता की भावना को बढ़ावा दिया जाता है।

2.    सत्याग्रह (Satyagraha): गांधीवादी दृष्टिकोण में संघर्ष को सत्याग्रह के माध्यम से हल किया जाता है। इसका मतलब है विरोधी पक्ष के खिलाफ नैतिक और धार्मिक ढंग से आवाज उठाना, लेकिन बिना हिंसा या अत्याचार के।

3.    आत्मसमर्पण (Self-sacrifice): गांधीवादी दृष्टिकोण में संघर्ष का माध्यम आत्मसमर्पण होता है। यहां विरोधी पक्ष के साथ सहमति और समझौता की भावना को प्रकट किया जाता है और अपने आप को समर्पित किया जाता है ताकि समस्या का समाधान संभव हो।

गांधीवादी दृष्टिकोण से संघर्ष को दृष्टिगत करने से समाधान एक सामाजिक और धार्मिक प्रक्रिया बन जाता है जो समृद्धि, समानता, और शांति की दिशा में प्रगति को संभव बनाता है।

 

3. शांतिपूर्ण और हिंसक संघर्षों के बीच अंतर ।

Ans: शांतिपूर्ण और हिंसक संघर्षों के बीच कई अंतर होते हैं:

1.    प्रकार:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष अहिंसात्मक ढंग से होता है, जैसे सत्याग्रह और सहयोग। हिंसक संघर्ष में हिंसा, अत्याचार, युद्ध, आदि शामिल होते हैं।

2.    परिणाम:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष में लोगों के बीच समझौता और समाधान की प्रक्रिया होती है। हिंसक संघर्ष में घातक परिणाम होते हैं जैसे जीवन की हानि, वास्तविक या सांस्कृतिक नुकसान, आदि।

3.    उद्देश्य:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष का उद्देश्य विवादों को समाधान करना, समाज में एकता और समरसता को बढ़ावा देना होता है। हिंसक संघर्ष का उद्देश्य आतंकवाद, अत्याचार, और शक्ति की प्राप्ति हो सकता है।

4.    उपयोग:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष आमतौर पर विपक्षी पक्ष के साथ संवाद और समझौता के रूप में प्रयोग किया जाता है। हिंसक संघर्ष अक्सर युद्ध, हिंसा, और आतंकवाद के रूप में उपयोग किया जाता है।

5.    दृष्टिकोण:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष के पीछे आत्मसमर्पण, समझौता, और समरसता के लिए भावना होती है। हिंसक संघर्ष में विरोधी पक्ष के खिलाफ शक्ति और अधिकार की भावना होती है।

6.    व्यक्तिगत प्रभाव:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, जबकि हिंसक संघर्ष विशेष रूप से नकारात्मक प्रभाव डालता है, जैसे कि आतंकवाद के रूप में।

7.    स्थिरता:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष दूरस्थ और स्थायी समाधान प्रदान करता है। हिंसक संघर्ष अक्सर समस्याओं को अधिक जटिल बनाता है और स्थायी समाधान की बजाय विरोध और विभाजन को बढ़ावा देता है।

8.    समय:

·        शांतिपूर्ण संघर्ष अक्सर समय की मांग करता है, जबकि हिंसक संघर्ष तत्काल परिणाम दिखाने के लिए प्रयासरत होता है।

 

4. संघर्ष समाधान में संयुक्त राष्ट्र संगठन की भूमिका की व्याख्या करें?

Ans: संघर्ष समाधान में संयुक्त राष्ट्र संगठन (UN) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विश्व समुदाय की एक मानवीय और शांतिप्रिय भविष्य की दिशा में समर्थन प्रदान करता है और संघर्षों के समाधान में मध्यस्थता का कार्य करता है।

संयुक्त राष्ट्र संगठन का मुख्य उद्देश्य सांस्कृतिक समग्रता, सामाजिक समरसता, आर्थिक विकास, और अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को प्रोत्साहित करना है। यह अपने सदस्य राष्ट्रों के बीच संबंधों को सुधारने और संघर्षों को सुलझाने के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म के रूप में काम करता है।

संयुक्त राष्ट्र संगठन की महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं:

1.    शांति संरक्षण: संयुक्त राष्ट्र संगठन अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण रूप से काम करता है। यह आपत्तिजनक स्थितियों के समाधान में मध्यस्थता करता है और युद्ध और संघर्ष को रोकने के लिए उपाय करता है।

2.    विकास: संयुक्त राष्ट्र संगठन विकास क्षेत्र में सहायता प्रदान करता है, जैसे कि गरीबी की अवरुद्धि, शिक्षा, स्वास्थ्य, और जल संसाधनों के प्रबंधन। यह विश्व के सभी क्षेत्रों में समृद्धि और समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करता है।

3.    मानवाधिकार: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए काम करता है। यह विभिन्न समुदायों और अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा और समानता को सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है।

4.    पर्यावरण: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण संरक्षण के मामले में भी सक्रिय रूप से है। यह जलवायु परिवर्तन, जल संसाधनों का प्रबंधन, और वन्य जीव निवास स्थलों की सुरक्षा में सहायता प्रदान करता है।

5.    अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: संयुक्त राष्ट्र संगठन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संबंधों को बढ़ावा देता है और विभिन्न राष्ट्रों के बीच वित्तीय, सांस्कृतिक, और आर्थिक मुद्दों को समाधान करने में मध्यस्थता करता है।

इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र संगठन संघर्ष समाधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विश्व के विकास और संतुलन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।




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